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बस इंसान को छोड़ के

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद बस इंसान को छोड़ के 64444 0 Hindi :: हिंदी

बक्त बे रहम जित गया 
हार गई फिर जिंदगी 
काल रूपी पिशाचनी ने 
छीन ली मेरी हर ख़ुशी 
पहले भावनाएँ
अब छीन लिया जज्बात भी 
इस जिस्म का मैं क्या करू 
जो मूर्छित बेजान हैं 
उन अपनों को क्या कहु 
जो ब्यापारी परिवार थे 
कोई हुस्न के सौदागर 
तो कुछ के 
बिगड़े मिजाज थे 
आये थे जो काम से 
बो पूरा हुआ नहीं 
कुछ ने साथ छोड़ दिया 
कुछ ने अपनाया नहीं 
जो छूती थी हमे 
अपनी नन्ही सी 
तरहथिओं से 
गाल को सहलाती थी 
गले में बाहें डाल के 
जो माँ कह पुकारती थी 
चुमती थी झूलती थी 
अपनी छोटी छोटी कदमों से
यहां से बहां बहां से यहाँ 
आंगन में घूम थी
अपनी नन्ही से कंधे पे 
पूरा घर उठाये फिरती थी 
बो परी भी छोड़ गई
अब क्या बचा हैं 
पास मेरे 
बस अभी चलते हैं
मिलेगे हम फिर कही 
सायद इसी देश में 
बस इंसान को छोड़ के 
इंसानियत के भेस में 

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