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अंधविश्वास

Santoshi devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #भ्रम#टोटके#वहम#भ्रांति 11927 0 Hindi :: हिंदी

फेर अंधविश्वास का,ऐसा देता रोग।
होते फिरे भ्रमित यहाँ,ज्ञानी ध्यानी लोग।।

समृद्धि सौरभ भर खिले,जीवन उपवन फूल।
हुई अंधविश्वास की,नष्ट जहां पर मूल।।

ओट अंधविश्वास की,होते खोटे काम।
चाहे शिक्षा का रहे,दौर भले ही आम।।

बिना बिचारे कर रहे,पूरी मन की आस।
जीवन में यह रास्ता,बने अंधविश्वास।।

मिले सुनहरे पल यहाँ,हमको कई हजार।
व्यर्थ अंधविश्वास में,जीवन दिए गुजार।।

राह अंधविश्वास का,होता जाता अंत।
मन पतझड़ यह ठान ले,सच का सदा बसंत।।

मन रहिमन भी साधता,साधे भी है राम।
बसा अंधविश्वास मन,भजे कई फिर नाम।।

लोग अंधविश्वास वश,जाते रिश्ते भूल।
चुभते रहते मर्म फिर,जीवन भर बन शूल।।

मिटे अंधविश्वास यह, मिटे अगर अज्ञान।
पाए बन तब आदमी,दूजी नजर महान।।

मूल अंधविश्वास की,देती कर बर्बाद।
रहे मुक्त इससे अगर,सोच करे ईजाद।।

 संतोषी देवी
 शाहपुरा जयपुर राजस्थान।

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