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*आज की प्रेरक रसकथा✍🏻 प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......... करण सिंह 💐💐💐🙏🙏 *!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!*

Karan Singh 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता/*आज की प्रेरक रसकथा✍🏻 प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......... करण सिंह 💐💐💐🙏🙏 *!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!* /भक्तरविदास/भक्ति/राम से बड़ा राम का नाम/रामायण/कृष्ण/कृष्ण लीला/गवारिया बाबा/एक कहानी/ 12336 0 Hindi :: हिंदी

*आज की प्रेरक रसकथा✍🏻 प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......... करण सिंह
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*!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!* 


 पागलबाबा के कुँज में  “ग्वारिया बाबा जी” के चरित्र का गायन हो रहा है ।  

सख्य रस के  ये अद्भुत रसिक थे ...भगवान श्रीकृष्ण को उन्होंने “यार” ही कहकर सम्बोधन किया।

श्रीधाम वृन्दावन के प्रति इनकी बड़ी निष्ठा थी ....पर इनके “यार” का हवाला देकर इनसे कुछ भी करवाया जा सकता था ।

उन दिनों  ग्वारिया बाबा ने सुना कि  जयपुर के महाराजा माधोसिंह एक विशाल मन्दिर श्रीवृन्दावन में बनवा रहे हैं .....ये सुनते ही उस मन्दिर निर्माण का कार्य देखने आगये ....मन्दिर के ठेकेदारों को  सैकड़ों मज़दूरों की आवश्यकता थी ...ग्वारिया बाबा को जब देखा  तो एक ठेकेदार ने पूछ लिया .....मज़दूर हो ?   प्रसन्न होकर ग्वारिया बाबा बोले ...हाँ ...मजदूर ही हूँ ।    काम करोगे ?   हाँ क्यों नही ....ग्वारिया बाबा ने हामी भरी ।

बस फिर क्या था ....दिन भर मजदूरों के साथ लगकर ग्वारिया बाबा काम करते ....उसके बाद जब उन्हें पैसा मिलता तो  उससे चना और गुड़ ख़रीदकर लाते और मजदूरों में ही बाँट देते ।

ठेकेदारों ने इस बात पर कोई ध्यान दिया नही ...उन्हें मतलब भी नही था ...पैसा रखो या फेंक दो उन्हें क्या !   पर  कुछ दिन के बाद जयपुर के महाराजा स्वयं मन्दिर के निर्माण कार्य को देखने श्रीवृन्दावन आये .....तो उनकी दृष्टि   इस परम तेजस्वी मजदूर पर पड़ी ....महाराजा ने मन में विचार किया ये मजदूर तो नही है ...औरों से पूछा तो उत्तर मिला ...महाराज ! ये मजदूर तो विचित्र है  इसको पैसे का भी लोभ नही है ....दिन भर हंसते खेलते ये काम करता है और शाम को जो इसे पैसे मिलते हैं उससे गुड चना ख़रीद कर अन्य मज़दूरों में ही बाँट देता है । 

*आज की प्रेरक रसकथा✍🏻 प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......... करण सिंह
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*!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!* 



महाराज को रुचि जागी उस मजदूर में ....”बुलाओ उसे यहाँ”.....महाराज की आज्ञा थी ।

ग्वारिया बाबा को बुलवाया गया और महाराज ने स्वयं बड़े आदर से  पूछा ...पैसे का लोभ नही है तो काम क्यों करते हो ?

बाबा का उत्तर था ...”मेरे यार को मन्दिर बन रह्यो है ....मैं इतनी सेवा हूँ नाँय कर सकूँ का ?  

महाराज चकित रह गये ऐसा उत्तर सुनकर ....ग्वारिया बाबा फिर बोले ...तुम्हारे पास धन है तो तुम धन ते सेवा कर रहे हो ....मैं तन ते कर  रह्यो हूँ ....और जे बेचारे अन्य मजदूर भूखे रहके काम करें जा लिये मैं  इनकूँ बाद में गुड़ चना खिलाऊँ ....मेरे यार की सेवा में आप, मजदूर सबै तो लगे हैं या लिये आप लोग धन्य हो ......ये कहकर जैसे ही  ग्वारिया बाबा जाने लगे ....तभी महाराज के सचिव ने कहा ...यही हैं श्रीवृन्दावन के प्रसिद्ध सन्त ग्वारिया बाबा ।  सन्तों के प्रति आदर भाव था ही जयपुर महाराजा का ...और ग्वारिया बाबा का नाम इन्होंने सुन भी रखा था ...भारत के महान संगीतकार श्रीविष्णु दिगम्बर जी इनको गुरु मानते हैं ये इन्होंने सुन रखा था ....तो महाराज स्वयं उठे और  ग्वारिया बाबा से जोर से बोले - बाबा ! तुम्हारा यार बुला रहा जयपुर ...नही चलोगे ? 

मेरो यार जयपुर में ....जयपुर में कहाँ है ?   

श्री गोविन्द देव जी ।  महाराज ने नतमस्तक होकर कहा ।

ग्वारिया बाबा रुक गये .....अच्छा !  बुलाय रह्यो है ?    सोचने लगे बाबा ...फिर बोले ....हाँ ,  अपने बृज के लोगन की याद आती होगी ना बाकूँ !   चलो !  अभी चलो !  महाराज प्रसन्न हो गये ...और उसी समय उनके लिए गाड़ी मँगवाई ...और जयपुर के लिए चल दिये थे ।

राजस्थान ...मेरो यार  वृन्दावन ते डर के नही आयो है ..अरे !  तुम सब राजस्थान वासियन के ऊपर कृपा करिवे कुँ जे पधारो है ...जा लिये खूब सेवा करो मेरे यार की ...खूब खिलाओ रिझाओ ।
ग्वारिया बाबा  जयपुर में गोविन्द देव जी के सामने खड़े होकर सब दर्शनार्थियों को कहते ....फिर अपने यार को गाकर सुनाते ...वो जब गाते तो सब जयपुर वासी मन्त्र मुग्ध हो जाते ...उन्हें कुछ भान नही रहता । 

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*!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!* 


पर ये क्या हुआ ....जयपुर आने के बाद  ग्वारिया बाबा बीमार पड़ गये ...वैद्य दवा दे रहे थे .....पर उसका कोई असर हो नही रहा था ....तभी “नाथ द्वारा” के गोसाईं जी  जयपुर महाराजा के यहाँ पधारे तो ग्वारिया बाबा से भी मिले ...और चर्चा चर्चा में कह दिया ....”आपको यार तो नाथ द्वारा में भी है वहाँ हूँ बुलाय रह्यो है”  अस्वस्थ थे ग्वारिया बाबा पर “यार बुलाय रह्यो है” ...ये सुनते ही उठकर बैठ गये ...बोले ...गोसाईं जी !  चलो .....महाराज ने कहा  बाबा अभी आप अस्वस्थ हो नाथ द्वारा दूर है ......आप जब स्वस्थ हो जाओ तब जाना ।  पर ग्वारिया बाबा जिद्दी स्वभाव के थे ....बोले ..महाराज ! अपने वैद्य कुँ कह दो पुड़िया बनाय के दे दे ...मैं खातो रहूँगो ।

वैद्य जी ने  बीस पुड़िया दवा की बनाकर दे दी ....और समझा ही रहे थे कि  बाबा ने सब पुड़िया खोली और दवा एक ही साथ खा ली ...और हंसते हुये बोले ....”सबरो रोग अब गयो” और आश्चर्य,  बाबा बिल्कुल ठीक हो गये ।  गोसाईं जी के साथ  बाबा  नाथद्वारा आगये थे .....यहाँ आकर मन्दिर में  खड़े होकर बाबा खूब रोये ....”श्रीनाथ” नाम ते बढ़िया का “राधानाथ”ठीक नही लगतो ?  फिर प्रेम भाव से बोले ...यार ! तेरी जो राजी वाही में  हमहूँ राजी । 

एक दिन  नाथ द्वारा के  गोसाईं जी के बड़े पुत्र  जो सेवायत थे ...वो मैदान में पेण्ट शर्ट पहनकर  क्रिकेट खेल रहे थे ....ये देखा ग्वारिया बाबा ने तो भाग के उसके पास गये और जोर से चार थप्पड़ मार दिये ...और चिल्लाकर बोले ...धोती तुम्हें धन वैभव सब दे रही है उसके बाद भी तुम उसका आदर नही करते ...लोग तुम्हारे पैर छूते हैं  फिर भी तुम उनके अनुरूप आचरण नही करते ।

वहीं क्रिकेट के मैदान में ही गुसाँई जी के बड़े पुत्र को पीट दिया था ग्वारिया बाबा ने ....वो बेचारा क्या बोलता वहाँ से चला गया ....तो ग्वारिया बाबा को अब दुःख हुआ ...देखो गुसाँई बालक पर मैंने हाथ उठाया ...वो दुःखी होकर चला गया ....ग्वारिया बाबा उसी समय पुलिस थाने में चले गये और वहाँ जाकर बोले ...गोसाईं जी के बड़े पुत्र को मैंने पीट दिया है ...मुझे जेल में बन्द करो ...पुलिस ने कहा ...महाराज ! आप जाओ यहाँ से ....यहाँ आपके लिये कोई जगह नही है ....पर ग्वारिया बाबा माने नही ....ज़बरदस्ती जेल में घुस गये  और कोने में जाकर बैठ गये ।


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*!! यार की यारी - ग्वारिया बाबा !!* 


गोसाईं जी  बाबा को खोजते खोजते थक गये थे पर किसी ने कह दिया तो वो थाने में गये हैं ...अब गोसाईं जी गये और थाने से छुड़वा कर ले आये ....,.मोते अपराध है गयो गोसाईं जी !

कोई अपराध नाँय भयो .....आपने सही शिक्षा दयी है .....भेष भूषा को आदर गोसाईं बालकन कुँ करनो ही चहिए .......बाबा से बहुत कहा ....पर बाबा को अच्छा नही लगा था   गोसाईं बालक को पीटना .........

एक दिन बाबा बोले ....मेरो मन अब नही लग रह्यो यहाँ ....मोहे श्रीधाम भिजवाय दो .....

गोसाईं जी ने व्यवस्था की और ग्वारिया बाबा वापस श्रीवृन्दावन आगये ....और आकर ये बहुत नाचे यहाँ ....बाँके बिहारी मन्दिर  में जाकर बोले थे .....श्रीवृन्दावन ते बाहर जानों तो कालिख मुँह में पोतवे के बराबर है .....यार !  अब मत भेजियो श्रीवृन्दावन ते बाहर । 

ग्वारिया बाबा इसके बाद  विपिन राज की सीमा से बाहर  कभी गये नही..!!
  
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