ये महंगाई की कैसी मार न ऊंचाई न आधार कब आलु प्याज सोने सम बन जाएं न जाने सोना कहां बिकवन आए हीरे का तो न कोई पार, ये महंगाई की कैसी मार न ऊंचाई न आधार प्याज से ज्यादा इसकी किमत रुलाए अमीर क्या? गरीब क्या? सब इसमें फस जाए ये ह्रदयाघात देती बार-बार, ये महंगाई की कैसी मार न ऊंचाई न आधार अब क्या लोग रेत से नहाएंगे खाने में भी कंकङ-पत्थर खाएंगे ना इसका कोई उपचार, ये महंगाई की कैसी मार न ऊंचाई न आधार