Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

विजय

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक विजय 53909 0 Hindi :: हिंदी

अगर विजयी बनाना है, तो पहले खुद को ही जीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे लिया चीत?
पहला शत्रु काम है, जिससे लड़ना नहीं आसान।'
देव- तुल्य इंसान को, बना देता है पशु- समान।
इस शत्रु के समर्पण से, गिरे व्यभिचार की भीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे लिया चीत?
शत्रु दूसरा क्रोध है, जो रचता विनाश के छंद।
बुद्धि- श्रेष्ठ मनुष्य को, बना देता है मति -अंध।
इस शत्रु के विनाश से, शत्रु भाव जाए बीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे  लिया चीत?
तीजा शत्रु मद है, जिसपर भी थोड़ा लगा रंदा।
जो बना देता है, मनुष्य को मय नयन अंधा।
इस विजयी यंत्र से, निकले मानवता संगीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे लिया चीत?
अगर विजयी बनाना है, तो पहले खुद को ही जीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे लिया चीत?
चौथा शत्रु मोह, जिसपर कर मज़बूत पकड़।
बंधनहीन मनुष्य को, जगत् में लेता है जकड़।
इस शत्रु के विनाश से, मिटे आवागमन की रीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की  कैसे लिया चीत?
अगर लोभ को जीत लिया, तुम कहलाओगे जिन।
अपने -आप पूरी दुनिया, क़दमों में होगी एक दिन।
संतोष कुमार सबसे पहले, तू खुद को ही जीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे लिया चीत।
अगर विजयी बनाना है, तो पहले खुद को ही जीत।
खुद को ही नहीं जीत सका, औरों की कैसे  लिया चीत?

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: