Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक इस दुनिया में जो गरीब होता है उसकी दुरदशा का मर्मिक चित्रण है 14592 0 Hindi :: हिंदी
मैं एक इन्सान - निर्धन की संसार ; शिति - दीन हूँ , मुझे कहीं जगह ना मिला - इसलिए उत्पीड़न की गर्भ में लिया स्थान ; मैं आधि - व्याधि की गर्भ से निकलकर खिला , मैं शिति -दीन - बड़ी अभागी है मेरी जननी ; आधि - व्याधि मेरा जन्म दाता - व्यथा मेरा पिता , अत्रु है जीवन कहानी । उर में अत्रु की सागर - काटेंं से बने अपना डगर - मैं कौन ! क्या है अभिलाषा ? सब कुछ है बंजर - निर्धन का है संसार , कभी - कभार मिलता भर पेट आहार - कभी कुछ नहीं ! तो पीता हूँ ज़हर ; अत्रु से प्यास बुझाता हूँ - भूखा पेट सोता हूँ ; ना लिया मेरा कोई खबर - रिश्ते - नाते बहुत हैं सारें - वह सब नाम के - ना कोई काम के - जो रहती है हर पल साथ ; दुनिया से क्या कहूँ - तिमिर में छोड़ा अपना साथ । ना मेरा कोई मित्र ; ना है मेरा भगवान - क्योंकि मैं गरीब इन्सान ; जिन्दगी का रास्ता तिमिर - परिमल है तो बदलता समीर , मुश्किल है लेना साँस ; दुनिया में - कैसे कँरु निवास । अब कुछ लिखता हूँ - वक्त को स्त्री रुप में डालता हूँँ ; मैं सुन्दरी नारी - दुनिया में अकेली - अबला बन चुकी हूँ ; दर्द भरी उर हमारी ; ना समझा व्यथा हमारी , ऐ कैसी संकट की घड़ी ; भूख से बेहाल होकर - दिन बीता रहे हैं तड़प -पड़पकर - लालन - पालन करती देह बेचकर - मेरी परिचय दूँ - वेश्या ! मैं अनाथ - भटकता राहों में - टूटा उर मेरे साथ ; काटों से सजा जीवन पथ , भिक्ष से गुजारा होता - पल - पल हालत से डरा हूँ - संकल्प से लड़ा हूँ - मैं जिन्दा खड़ा हूँ । निर्धन की संतान - देख तमाशा उसका - कोई नहीं है दुनिया में जिसका - अब ना रहा कोई मेरा ; तो कैसे मिलेगा सहारा , जा तू साँस की डोर तोड़के - मत आ तू दुनिया में वापस मुड़के , अब ना रहेगा बेसहारा इन्सान - अभ्युदय हो हर इन्सान ; हीरा बनके चमकेगा हर इन्सान । रतन किर्तनीया मो * 9343698231