Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक चूहेदानी 46255 0 Hindi :: हिंदी
फंसाने को, हर जगह है दाना -पानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। हर जगह, बिखरा कपट- कण। पल-पल, क्षण- क्षण। सेज हो, चाहे रण। दिखती बटेर, निकलता फण। हर सुंदर चीज, चाहती क़ुर्बानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। हर चीज, लिपटी कपट में। क्या है बाहर, क्या है पट में। मुंह में क्या है, क्या है घट में। चोर, उचक्के, भी हैं मठ में। हर खाना चाहता, है बिरयानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। फंसाने को, हर जगह है दाना- पानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। यहां, हर चीज ललचाती है। रम़ूज से, बुलाती है। पहले हंसाती, फिर फंसाती है। फिर जीवन- भर, रुलाती है। सिर पीट- पीट, लेता रवानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। कमाल की है, यह चूहेदानी। फंस गए, बड़े-बड़े संत, महात्मा, ज्ञानी। पता नहीं कब, दब गई लासा कमानी। मरने के बाद भी न, समझा असल कहानी। धरी रह जाती, हर्जा होशियारी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। फंसाने को, हर जगह है दाना-पानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी।