akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक गांव का बचपन 2496 0 Hindi :: हिंदी
अपने गांव का वो प्यारा ,स्वप्न दिखाई देता है | गांव में बीते बचपन का , वो द्रश्य दिखाई देता है || कांव कांव कौओं की ,हमको सुबह सुनाई देती थी | व्र्क्षों पर तोता मैना की, हलचल होती रहती थी || कुहू कुहू कोयल की बोली ,सबके मन को भाती थी | घर के आँगन में गौरैया , दाना चुगने आती थी || गाय रंभा रंभा कर ,बछड़े को पास बुलाती थी | दूध पिलाकर बछड़े को ,अमृत हम को दे जाती थी || खेतों में जाते बैलों की ,घंटी टन-टन बजती थी | गांव के मंदिर से शंख की,ध्वनि सुनाई देती थी || खेतों की हरियाली प्यारी , मन प्रसन्न कर देती थी | आमों की अमराई की ,वो छांव सुहानी लगती थी || दोस्तों की वो हंसी ठिठोली ,सबको प्यारी लगती थी | गाँव के प्यारे अपनेपन की,सीख सुहानी लगती थी || गाँव की गलियोंकी वो ,हमको शाम सुहानी लगती थी | ठंडी- शुद्ध हवा की , हमको खुश्बू प्यारी लगती थी || शहरों के कोलाहल से ,हमें शांति सुहानी लगती है | गाँव में बीते बचपन की, हमें यादें प्यारी लगती हैं | रचियता ;--अखिलेश श्रीवास्तव
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...