शीर्षक (पिता)
शीर्षक (पिता)
मेरे अल्फ़ाज़ सचिन कुमार सोनकर
माँ का प्यार तो तुमको याद रहा।
क्या पिता का प्यार तुम भूल गये।
एक पिता को समझना आसान नही पिता के जैसा
कोई महान नही।
पिता तो वो पीपल है जिसकी छाँव में तुम
पले बड़े।
जिस हाँथ को पकड़ के चलना सीखा उसका
स्पर्श तुम कैसे भूल गये।
तुम्हारे भविष्य की चिंता दिन रात उनको
सताती है।
यही सब सोच के अब तो उनको नींद भी नही आती
है।
ज़िम्मेदारी का बोझ वो उठाते है,
अपनी समस्या हम सब से छुपाते।
कितना भी ग़म हो ज़िन्दगी में सदा वो
मुस्कुराते है।
टूट ना जाये हम कहीं इसलिये कभी एक आँसू
भी नही छलकाते है।
बिना कुछ बोले भी वो हमारा दर्द बस यू ही
समझ जाते है।
एक पिता वो आधार है ,जिस पर टिका पूरा घर
द्वार है।
पिता के बिना एक घर की कल्पना करना भी
निराधार है।
मै बच्चा नादान था बाद में समझ आया,
मेरे लिए सबसे ज्यादा कौन परेशान था।
खुद की अभिलाषा का दमन करते है, तब कही जा
के बच्चे आगे बढ़ते है।
माँ तो अपना दुख हैं रो के बतलाती।
क्या एक पिता के आँख में आँसू किसी ने
आते देखा।
बच्चों का भविष्य बनाने एक पिता को
मैंने अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते देखा।
अपना गम छिपा के बच्चों के आगे सदा
मुस्कुराते देखा।
पिता की अभिलाषा का दमन देखा है ,
उसमे छिपी परिवार की उनत्ति की रूप रेखा
है।
माँ से मेरा स्वाभिमान है,
तो पिता से मेरा अभिमान है।