Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक खण्ड दो। जितेन्द्र शर्मा, लघु उपन्यास, मोहिनी का प्रतिशौध, मोहिनी का प्रायश्चित, 32781 1 5 Hindi :: हिंदी
कहानी- प्रतिशौध या प्रायश्चित।(खण्ड-दो) लेखक- जितेन्द्र शर्मा खण्ड-दो (प्रथम भाग से आगे) युवती जिसने अपने आप को आत्मा बताया था, के जाने के बाद विपिन चंद्र सारी रात सो न सके। उन्होने भूत प्रेतों और आत्माओं के बहुत सारे कहानी- किस्से पढे सुने थे, किंतु विश्वास कभी नहीं किया। अब जब यह घटना उनके साथ घटी तो उन्हें अपने विश्वास पर ही विश्वास क्षीण होता जा रहा था। वह सोच रहे थे कि यदि वह युवती सच में कोई आत्मा नहीं थी तो उनकी पत्नी को क्यों न दिखाई दी? यदि इस घटना की साक्षी उनकी पत्नी न होती तो वह कदापि विश्वास ना करते। सारा दिन व्यतीत हो गया। एक बार विचार आया कि वह अपने किसी परिचित से इस विषय पर चर्चा करें, या अपनी पत्नी से ही बात करें, फिर सोचा कि अनावश्यक किसी को मानसिक तनाव देना उचित न होगा। जबकि उसने स्वयं कहा है कि वह उनको कोई हानि पहुंचाने वाली नहीं है। अतः क्यों न उसका इंतजार किया जाए और वह क्या चाहती है? यह देखा जाए। उसके बाद निर्णय करना उचित रहेगा कि आगे क्या हो। अतः किसी को बिना बताए युवती की प्रतीक्षा करने लगे। ठीक दस बजे पहली रात की तरह पुनः दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई, और विपिन चंद्र ने बिना कोई देर किए दरवाजा खोल दिया। जब व्यक्ति किसी समस्या का सामना करने के लिए स्वंय को तैयार कर लेता है तो साहस के कारण व्यक्ति की छमता में दोगुनी वृद्धि हो जाती है। सामने वही युवती थी। बिना किसी औपचारिकता के विपिन चंद्र ने युवती से अंदर आने के लिए कहा और दरवाजे से हट गए युवती भी बिना कोई दिए देर किए यंत्रचलित सी आकर रात वाली कुर्सी पर बैठ गई। "बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?" विपिन चन्द्र ने पूछा। "आप ही हैं जो मेरी सहायता कर सकते हैं।" युवती ने कहना शुरू किया। "मैं बड़ी आशा लेकर आपके पास आई हूं, यदि आपने मेरी सहायता न की तो मेरा मानवता से ही विश्वास उठ जायेगा।" वह चुप हुई और आशा भरी नजरों से उनकी ओर देखने लगी। विपिन चन्द्र का सारा भय जाता रहा। वह बोले-" निसंकोच कहो जो कहना चाहती हो, मेरे वश में होगा तो मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूंगा।" युवती कृतज्ञता भरे शब्दों में बोली -"आपसे मुझे यही आशा थी। मेरा नाम मोहिनी है।" वह थोड़ा रूकी और पुनः बोली-" मेरा आशय है कि जब मैं जीवित थी तब मेरा नाम मोहनी था।" उसकी आंखें भर आईं। कुछ समय वह स्वयं को सम्हालने की कोशिश करती रही फिर बोली-"एक माह पूर्व मेरी हत्या हुई है और मेरे हत्यारे समाज में खुले घूम रहे हैं। मैं चाहती हूं उन्हें सजा मिले, इसलिये मैं आपके पास आई हूं।" "क्या? हत्या?" विपिन चन्द्र अवाक रह गये। कुछ समय स्वंय को संयत करने में लगा फिर बोले-"किन्तु मैं केवल सहानुभूति के अतिरिक्त क्या कर सकता हूं। तुम्हें पुलिस के पास जाना चाहिये था।" "पहले मैंने भी यही सोचा था किन्तु यदि मैं ऐसा करती तो उसका कोई लाभ न होने वाला था।" "क्यों?" "क्योंकि वह दिल्ली का बहुत बड़ा आदमी है और पुलिस का कोई अधिकारी मुझ आत्मा के लिये उससे बैर क्यों लेगा। दूसरे कानून किसी आत्मा की बात पर विश्वास करेगा यह मुझे आशा नहीं।" युवती ने कहा और एक गहरी सांस ली। युवती ठीक कह रही थी। विपिन चन्द्र बोले"-किन्तु तुम्हारा कोई परिजन या रिस्तेदार तो पुलिस के पास जा सकता है।" युवती जिसने अपना नाम मोहिनी बताया था पुनः उदास हो गई। उसकी आंखों से आंसु बहने लगे और कुछ छण बाद वह फूट फूट कर रोने लगी। विपिन चन्द्र ने उसकी यह दशा देख अनुमान लगा लिया था कि यह भले ही आत्मा है किन्तु अवश्य ही गहरी चोट खाई है। वह केवल उसे निहारते रहे। कुछ समय बाद वह संयत हुई और बोली- "रिश्तेदारो के नाम पर केवल मेरी मां और एक छोटी बहन है। पिता को मैं अभागन पहले ही खो चुकी हूं। यदि मेरी मां या बहन पुलिस के पास गई तो वे उन्हें भी मार देंगे। यह उन राक्षसों के लिये सामान्य बात है।" मोहिनी की बात सुनकर विपिन चन्द्र को हत्यारे के विषय में जानने की जिज्ञासा गहरी होती जा रही थी अतः वह बोले -"क्या तुम उस राक्षस का नाम बताना चाहोगी?" "शाहनवाज खान!" वह बिना कोई देर किये बोली। "शाहनवाज खान? कोन "शाहनवाज खान? क्या वही जो मैं सोच रहा हूं?" विपिन चन्द्र हकबका गये। वह एक ही शाहनवाज खान को जानते थे जो इतना शक्ति सम्पन्न था जैसा युवती बता रही थी। "हां वही शाहनवाज खान! एमएलए शाहनवाज खान! मंत्री शाहनवाज खान!" युवती क्रोध के कारण दांत पीसती हुई बोली। विपिन चन्द्र सन्न रह गये। उन्हें युवती की बात पर यूं एकाएक विश्वास नहीं आ रहा था। वह कुछ सोचते हुए बोले -"किन्तु शाहनवाज खान तुम्हें क्यों मारेगा?" "क्योंकि उसके इकलोते बेटे से मैं प्यार करती थी और शादी करना चाहती थी!" युवती ने घृणा भरे स्वर में कहा। "जहां तक मैं जानता हूं, शाहनवाज का बेटा तो पहले से ही शादी शुदा है और सम्भवतः वह एक या दो बच्चों का पिता भी हैं।" विपिन चन्द्र आश्चर्य से बोले। "यही तो मेरी हत्या का कारण बना।" युवती फुफकारती। "जो मैं सुन रहा हूं उस पर तत्काल विश्वास होना कठिन है। क्यों न हम फिर कभी इस पर बात करें।" विपिन चन्द्र बोले। युवती समझ गई कि वे इस विषय में अपने स्तर से पुष्टी करना चाहते हैं, अतः बोली-"ठीक है सर! मैं चार दिन बाद फिर आऊंगी? मुझे आशा है आप निराश नहीं करेंगे।" उन्होने स्वीकृती में गर्दन हिलाई और युवती ने अपने स्थान से उठकर रास्ते की ओर खुलने वाला द्वार खोला और बाहर। निकल गई। वह अपने स्थान से उठे और बाहर झांका, मोहिनी नाम की आत्मा कोहरे में विलीन हो चुकी थी। वह कुछ देर बाहर देखते रहे फिर द्वार बन्द करके अपने बिस्तर में घुसकर विचारमग्न हो गये। *** क्रमस: शेष अगले भाग में।
1 year ago