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लघुकथाः स्नेह-चिकित्सा

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Social 26029 0 Hindi :: हिंदी

लघुकथाः स्नेह-चिकित्सा
	एक झोपड़ी में एक बुड्ढा और एक बुढ़िया रहते थे। वे निःसंतान थे। कूली-मजूरी कर अपना जीवन-यापन कर रहे थे। मजदूरी अधिकतर बुड्ढा किया करता था तथा बुढ़िया झोपड़ी की देखभाल।
	ठंड का महीना था। ़कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। 
गरीबी के चलते, उनके पास ओढ़ने-बिछाने के ढंग के कपड़े नहीं थे। जो थे, चिथड़े-चिथड़े हो चुके थे। 
एक कटे-फटे चद्दर को बुढ़िया ओढ़ा करती थी, तो एक कम फटीचर कंबल को बुड्ढा। इससे दिन जैसे-तैसे कट जाता था, पर रात काटने को दौड़ता था।
	एक रात बुढ़िया को मौसमी बुखार ने अपने आगोश में लिया। वह कंपकंपाने लगी। बुढ़िया की कंपकंपी बुड्ढे से देखी नहीं गई। 
दिनभर की मशक्कत के बावजूद वह झटपट उठा। 
फटाफट सरसों का तेल हाथ में लिया और बुढ़िया के हाथ-पैर, पैर के तलवे व सिर की मालिश किया, ताकि उसको राहत की गर्मी मिले और वह चैन की नींद सो सके।
	हुआ भी यही; स्नेह-चिकित्सा से बुढ़िया की नींद लग गई। बुड्ढा अपना कंबल भी बुढ़िया को ओढ़ा दिया। 
फिर खुद चूल्हे के अलाव व लूंगी के सहारे सोने का प्रयास करने लगा। 
मारे थकान के वह भी नींद के आगोश में कब समा गया, कुछ पता ही नहीं चला।
	तड़के, भोर होने पर जब बुड्ढ़ा उठा, तब देखकर अचम्भे में पड़ गया कि बुढ़िया मालिश से रातभर में भली-चंगी हो गई है और रोजाने की तरह झाड़ू-पोछा कर रही है। 
उसको आश्चर्य तब और हुआ, जब उसका फटीचर कंबल बुढ़िया उसको जाने कब ओढ़ाकर दिनचर्या में जुट गई है और झाड़ू लगाने के दरमियान सिटी बजा रही है। 
उसका सीना गर्व से फूल गया। वह तेजी से उठा। 
फिर दूने उत्साह से मजदूरी के काम में जाने के लिए ऐसे तैयार होने लगा, गोया उसके जेहन में नवजीवन का संचार हो गया हो।
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