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व्यंग्य-कथाः श्रद्धांजलि सभाः एक किसान की

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग Satire 35194 4 4.5 Hindi :: हिंदी

व्यंग्य-कथाः	
				श्रद्धांजलि सभाः एक किसान की
	जैसा कि सभी की होती है; एक दिन एक किसान की मौत हो गई। किसान जिंदगीभर खेतों में खपता रहा और खप-खप कर अस्थिपंजर बना रहा। 
वह किसानी के काम में इतना व्यस्त था कि उसे न आंदोलन करने का फुर्सत मिला, न तोड़फोड़ करने का और न ही रोड जाम और भाषणबाजी करने का, जिससे वह देशभर में मशहूर हो सके। वह तो किसान की जिंदगी जीया और इंसान की तरह मर गया। 
उसके तीन पुत्र और तीन पुत्रियां थीं। सभी की शादी हो चुकी थी। 
उसकी शवयात्रा में घर के नाती-पोते, बेटे-दामाद, अड़ोसी-पड़ोसी और चरवाहे-दरवाहे सभी किस्म के लोग मौजूद थे। 
शवयात्रा से लौटते वक्त छोटा भाई बड़े भाई से बोला, ‘‘शाम को बाबा की श्रंद्धाजलि सभा रख देते हैं।’’
‘‘कैसी श्रद्धांजलि और कैसी सभा? बाबा ने तो फूटी कौड़ी बचत नहीं की है।’’ बड़े भाई ने हताशभरे लहजे में कहा।
‘‘वे घर के मुखिया थे। हमारा इतना तो दायित्व बनता है कि उनकी याद में कोई सभा-वभा कर लें।’’ इसपर मंझले भाई ने बड़े भाई को दायित्वों का स्मरण कराया।
‘‘ओह! अब मुझे तुमदोनों से सीखना पडे़गा? वे अस्पताल में भरती थे, तब हमें काफी व्यय करना पड़ गया था। पहले हमने साहूकार से उधारी मांग-मांगकर इलाज करवाया, फिर खेत गिरवी रख दिया। अभी तक साहूकार का 1 लाख रुपया से ज्यादा का कर्ज चढ़ चुका है हमपर।’’ बड़े भाई ने साफगोई से कहा।
‘‘उंह! उधारी चुका देंगे। चोरों की तरह कौन-से गांव छोड़कर भागे जा रहे हैं हम। हमें सिर्फ साउंड-सिस्टम, फ्लैक्स, दरी, चादर, शामियाना, चित्र, हार व चाय-नाश्ता का प्रबंध करना पड़ेगा। इतने में अच्छी सभा हो जाएगी।’’ छोटा जिद्द पकड़ लिया।
‘‘बी प्रेक्टिकल! क्या श्रद्धांजलि सभा नहीं करने से उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी? घर में भूंजी भांग नहीं है और तुमकों श्रद्धांजलि सभा की पड़ी है।’’ छोटे भाइयों को बड़े भाई ने डपटा, तो वे कुछ देर के लिए निरूतर हो गए। 
थोड़ी देर बाद मंझला हिम्मत कर मुंह खोला, ‘‘इससे हमारा भी मान-सम्मान गांव में बना रहेगा। पिछले महीने जब साहूकारिन मरी थी, तब गांव के साहूकार ने श्रद्धांजलि सभा की थी कि नहीं। इससे उसका गांव में कितना रुतबा बढ़ गया? उसने तो गांववालों को मृतक भोज भी दिया था, जिसके स्वाद की चर्चा कई-कई दिनों तक गांव में होती रही।‘‘ 
जैसा कि होता है; दाह संस्कार से लौटने के बाद सबके मुंह लटके हुए थे। घर में मातम पसरा हुआ था। 
रोना-गाना निरंतर चल रहा था। मिलने-जुलनेवाले आते थे और किसान को भला आदमी साबित कर लौट जाते थे। 
इधर रात ज्यों-ज्यों बढ़ने लगी, उधर तीनों भाई बेचैन हो उठे। तब तक आने-जानेवाले भी कम हो चुके थे। घर में सन्नाटा पसरा हुआ था।
बड़ा गंजेड़ी, मंझला मंदेड़ी और छोटा भंगेड़ी था। अब इनसे रहा नहीं गया। 
वे धीरे-धीरे अपने-अपने ठिकानों की ओर ऐसे निकल पड़े, जैसे बाबा की आत्मा की शांति के लिए अपने-अपने अड्डों में श्रद्धांजलियां देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करके रहेंगे।
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ROHIT YADAV
ROHIT YADAV Best

1 year ago

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Sahity Live
Sahity Live

1 year ago

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Sahity Live
Sahity Live Nice

1 year ago

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Shveta kaithwas
Shveta kaithwas Behad khubsurat

1 year ago

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