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सत्य-कथाः रेल अपहरणकांड

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ अन्य True Story 35684 0 Hindi :: हिंदी

सत्य-कथाः
					रेल अपहरणकांड 
	छग के दुर्ग जिले के कुम्हारी के पेट्रोल पंप व्यवसायी विजयचंद के अपहरण का आरोपी महेंद्र सिंह उर्फ झबरा निकला। यह शख्स बिहार में अपहरण उद्योग चलाया करता था, जो दुर्ग के केंद्रीय जेल में इसी तरह के गंभीर आरोपों में कैद था। 
व्यवसायी अपहरण कांड का फैसला 23 मई 2007 को सुनाया जाना था। 22 मई की दरम्यानी रात आरोपी महेंद्र सिंह जेल की दीवार फांद कर फरार हो गया। 
दीवार फांदने के लिए उसने लोहे के रिंग लगी रस्सी व बिजली के खंबे पर चढ़नेवाले सीढ़ी का इस्तेमाल किया। 
दुर्भाग्य से जेल की दीवार फांदने के करीब तीन माह बाद वह दिल्ली में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। 
तत्पश्चात उक्त अपहरण मामले में बिलासपुर के सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काटने लगा। 
बिलासपुर सेंट्रल जेल में रहकर उसने टेªन हाईजेकिंग का प्लान अपने साथियों के साथ मिलकर बनाया।
	जेल फांदने के मामले में उसका प्रकरण विचाराधीन था ही, जिसकी पेशी के लिए उसे पुलिसवाले बिलासपुर से दुर्ग-न्यायालय लाते और ले- जाते थे। 
एक दिन पेशी के उपरांत प्रधान आरक्षक व आरक्षक उसे जनशताब्दी एक्सप्रेस से बिलासपुर ले जा रहे थे। 
तभी पावर हाउस-भिलाई व कुम्हारी के बीच सिरसा गेट के पास महेंद्र सिंह के कुछ साथी युवक टेªन की चेन पुलिंग कर उसके इंजन में सवार हो गए। 
वे युवक टेªन के चालकद्वय की कनपटी में रिवाल्वर तानकर उनसे मारपीट करने लगे। 
यही नहीं, वे ट्रेन को हाईजेक कर उसके लोको पायलट को अपने हिसाब से चलाने के लिए रिवाल्वर के दम पर हुक्म फरमाने लगे। 
यहां तक कि उन्होंने रेल को कैवल्यधाम-कुम्हारी के पास जबरिया रुकवा दिया। 
उधर, मुख्य आरोपी महेंद्र के कोच में सवार दीगर आरोपियों ने महेंद्र सिंह को छुड़ाने के लिए पुलिस से संघर्ष करने में जुट गए। इस संघर्ष में उन्हें हथकड़ी की चाबी नहीं मिली, तो वे पुलिसबल पर आंखों में मिर्ची पावडर डालकर महेंद्र को हथकड़ी सहित ले भागे। 
वे पाटन रोड की ओर फरार हुए। रास्ते में उन्हें आई-20 कार मिला, जिसे उन्होंने रोका। 
वे कार पर सवार तीन अनजान व्यक्तियों की कनपटी पर कट्टा टिकाकर कार और मोबाइल लूट लिए। 
फिर वे उसी में सवार होकर पाटन की ओर भागने लगे। इस बीच जब पुलिस को पता चली कि वे पाटन रोड में हैं, तो पुलिस ने तगड़ी नाकेबंदी करनी आरंभ कर दी।
पुलिस को देखकर वे हड़बड़ा गए और हड़बड़ाहट में कार सहित तेजी से भागने लगे। पुलिस ने उनका जमकर पीछा किया। वे यह देखकर और घबरा गए। 
अब, चालक ने कार की गति सामान्य से ज्यादा कर दी, तो उनकी किडनैप्ड  कार पाटन-अभनपुर मार्ग पर ग्राम खम्हरिया के निकट एक मोड़ के पास पलट गई। इसके बाद आरोपी इधर-उधर पैदल ही भागने लगे। 
पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया। सघन तलाशी में दो आरोपी पकड़े गए। दुर्घटनाग्रस्त कार से एक मोबाईल मिला। 
सपड़े गए दो आरोपियोें की शिनाख्ती पर शेष 8 आरोपी भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए, जिसमें महेंद्र का पुत्र भी था, जो नाबालिग था। 
तब महेंद्र सिंह का पता नहीं चला, लेकिन वह लगभग डेढ़ माह बाद धनबाद झारखंड में दबोचा गया।
इस हाईप्रोफाइल मामले में फैसला आने में पांच साल लग गए। न्यायालय ने प्रकरण मंे टिप्पणी की कि यह गंभीर प्रकृति का सामाजिक अपराध है। इसे बढ़ावा देने से रोकने के लिए आरोपियों को दंडित किया जाना बेहद जरूरी है।
न्यायालयीन फैसले में सभी आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। आरोपी महेंद्र सिंह को छोड़कर सभी आरोपियों की सजा साथ-साथ चली। अर्थदंड अदा नहीं करने पर सजा एक के बाद एक भुगतना पड़ा। 
आरोपी महेंद्र को आजीवन कारावास के अतिरिक्त 7 वर्ष की सजा अलग से सुनाई गई। 
नाबालिग आरोपी के विरूद्ध पृथक प्रकरण बाल न्यायालय में विचाराधीन भेजा गया।
उल्लेखनीय यह भी कि आरोपी महेंद्र को धनबाद-झारखंड में गिरफ्तार कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले प्रधान आरक्षक को आउट आफ टर्न प्रमोशन देने की प्रक्रिया शुरू की गई।
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