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प्रेम की पराकाष्ठा

Karan Singh 30 Mar 2023 कहानियाँ धार्मिक Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता/देवी देवताओं की परिक्रमा/भक्ति/प्रेम की पराकाष्ठा/ 19972 0 Hindi :: हिंदी

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*प्रेम की पराकाष्ठा*

*संकलन कर्ता- सपनों का सौदागर.....करण सिंह*
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*प्रेम की पराकाष्ठा*
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*घृणा को घृणा से नही जीता जा सकता , घृणा को प्यार से जीता जा सकता है l*

*(Hatered can't be conqured by Hatred , hatred can be conqured only by Love)*

महात्मा बुद्ध के पास एक दिन सुबह-सुबह एक आदमी आया और उनके ऊपर थूक दिया। बुद्ध ने चादर से अपना मुंह पोंछ लिया और उस आदमी से कहा, और कुछ कहना है?🙂🙂
 कोई आदमी आपके ऊपर थूके, तो आप यह कहेंगे कि कुछ और कहना है? पास बैठे भिक्षु तो क्रोध से भर गए। उन्होंने कहा, यह क्या आप पूछ रहे हैं? कुछ और कहना है?

बुद्ध ने कहा, जहां तक मैं जानता हूं, इस आदमी के मन में इतना क्रोध है, कि शब्दों से नहीं कह सका, थूक कर कहा है। लेकिन मैं समझ गया। इसे कुछ कहना है। क्रोध इतना ज्यादा है कि शब्द से नहीं कह पाता है। थूक कर कहता है।प्रेम ज्यादा होता है आदमी शब्द से नहीं कहता, किसी को गले लगा कर कहता है। इसने थूक कर जो कहा है हम समझ गए। अब और भी कुछ कहना है कि बात खत्म हो गई। वह आदमी तो हैरान हो गया। क्योंकि यह तो सोचा ही नहीं था कि थूकने का यह उत्तर मिलेगा। उठ कर चला गया। रात भर सो नहीं सका। 

*संकलन कर्ता- सपनों का सौदागर.....करण सिंह*
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दूसरे दिन क्षमा मांगने आया। बुद्ध के पैर पड़ गया, आंसू गिराने लगा।जब उठा तो बुद्ध ने कहा, और कुछ कहना है?तो आस-पास के भिक्षुओं ने कहा, आप क्या कहते हैं? उन्होंने कहा, देखो न मैंने तुमसे कल कहा था, अब यह आदमी आज भी कुछ कहना चाहता है, लेकिन ऐसे भाव से भर गया है कि आंसू गिराता है, शब्द नहीं मिलते। पैर पकड़ता है, शब्द नहीं मिलते। हम समझ गए। लेकिन कुछ और कहना है? उस आदमी ने कहा, कुछ और तो नहीं, यही कहना है कि रात भर मैं सो नहीं सका। क्योंकि मुझे लगा कि आज तक सदा आपका प्रेम मिला, थूक कर मैंने योग्यता खो दी। अब आपका प्रेम मुझे कभी नहीं मिल सकेगा।

बुद्ध ने कहा, सुनो आश्चर्य, क्या मैं तुम्हें इसलिए प्रेम करता था कि तुम मेरे ऊपर थूकते नहीं थे? क्या मेरे प्रेम करने का यह कारण था कि तुम थूकते नहीं थे? तुम कारण ही नहीं थे मेरे प्रेम करने में। मैं प्रेम करता हूं, क्योंकि मैं मजबूर हूं। प्रेम के सिवाय कुछ भी नहीं कर सकता हूं।

एक दीया जलता है, कोई भी उसके पास से निकले। वह इसलिए थोड़े ही उसके ऊपर उसकी रोशनी गिरती है कि तुम कहते हो। रोशनी दीये का स्वभाव है; वह गिरती है, तो कोई भी निकले, दुश्मन निकले दोस्त निकले, दीये को बुझाने वाला दीये के पास आए तो भी रोशनी गिरती है। तो बुद्ध ने कहा, मैं प्रेम करता हूं क्यों मैं प्रेम हूं। तुम कैसे हो, यह बात अर्थहीन है। तुम थूकते हो कि पत्थर मारते हो कि पैर छूते हो, यह बात निष्प्रयोज्य है। इसकी कोई संगति नहीं है। यह संदर्भ नहीं है।

*संकलन कर्ता- सपनों का सौदागर.....करण सिंह*
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तुम्हें जो करना हो तुम करो। मुझे जो करना है मुझे करने दो। मुझे प्रेम करना है। वह मैं करता रहूंगा। तुम्हें जो करना है, वह तुम्हें करते रहना है। और देखना यह है कि प्रेम जीतता है कि घृणा जीतती है? यह आदमी प्रेमपूर्ण है। यह आदमी प्रेयरफुल है। यह आदमी प्रार्थनापूर्ण है। ऐसे चित्त का नाम प्रार्थना है।
स्मरण रहे क्रोध पर  क्रोध से नहीं बोध से विजय प्राप्त की जा सकती है।
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*

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