Karan Singh 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक धार्मिक/सामाजिक/भक्ति/प्रायश्चित/गूगल/आज की कहानी/ 20404 0 Hindi :: हिंदी
*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳* 👇👇👇 💐प्रस्तुतकर्ता- सपनों का सौदागर.... करण सिंह💐 *प्रायश्चित* 👇👇👇 वह बारह-तेरह वर्ष का बालक ही तो था। कच्ची बुद्धि थी और साथ अच्छा न था । उसके एक संबंधी सिगरेट पीते थे । उसे भी शौक लगा । सिगरेट से फायदा तो क्या धुआँ उड़ाना उसे अच्छा लगता था। समस्या आई की सिगरेट खरीदने के लिए पैसे कहां से आवें? बड़ों के सामने ना पी सकता था ना ही पैसे मांग सकता था। तब, क्या हो? नौकरों की जेबें टटोली जाने लगी और पैसा धेला जो भी पल्ले पड़ता उसे उड़ा लिया जाता। बड़े सिगरेट पी कर फेंक देते तो वे टुकड़े इकट्ठे कर लिए जाते। मजा तो सिगरेट पीने में नहीं आता था पर उससे क्या! यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला, अचानक एक दिन विचार उठा कि ऐसा काम क्यों करना, जो बड़ों से छिपाना पड़े और जिसके लिए चोरी करनी पड़े? बात उठी ।उठी कि वहीं -की- वहीं दब गई। 💐प्रस्तुतकर्ता- सपनों का सौदागर.... करण सिंह💐 फिर उठी और पराधीनता दिन पर दिन खलने लगी। यह भी क्या कि बड़ों की आज्ञा बिना कुछ न कर सकें? ऐसे जीने से लाभ क्या? इससे तो जीवन का अंत कर देना ही अच्छा ! पर मरें कैसे ?किसी ने कहा था कि धतूरे के बीज खा लेने से मृत्यु हो जाती है ।बीज इकट्ठे किए गए, पर खाने की हिम्मत न हुई ।प्राण न निकले तो ?फिर भी साहस करके दो-चार बीज खा ही डाले। परंतु उनसे क्या होता था? मौत से वह डर गया और उसने मरने का विचार छोड़ दिया । जान बची ,साथ ही एक लाभ यह हुआ कि सिगरेट जूठन पीने और नौकरों के पैसे चुराने की आदत छूट गई। 💐प्रस्तुतकर्ता- सपनों का सौदागर.... करण सिंह💐 उसने आगे कभी चोरी न करने का निश्चय किया ।साथ ही यह भी कि अपनी चोरी को अपने पिता के सामने स्वीकार कर लेगा। यह डर तो ना था कि पिताजी उसे पीटेंगे, परंतु इतना तो था कि वे सुनकर बहुत दुखी होंगे। पिता के आगे मुंह तो खुल नहीं सकता था। सब बालक ने चिट्ठी लिखकर अपना दोष स्वीकार कर लिया। चिट्ठी अपने हाथों ही पिता को दी। उसमें सारा दोष कबूल किया गया था ,साथ ही उसके लिए दंड मांगा गया था ।आगे चोरी न करने का निश्चय भी था। 💐प्रस्तुतकर्ता- सपनों का सौदागर.... करण सिंह💐 पिताजी बीमार थे ।वे बिस्तर पर लेटे थे। चिट्ठी पढ़ने के लिए उठ बैठे। चिट्ठी पढ़ी, आंखों से मोती की बूंदें टपकने लगीं। थोड़ी देर के लिए उन्होंने आंखें बंद कर लीं। चिट्ठी के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और बिस्तर पर पुनः लेट गए। मुंह से उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। बालक अवाक् रह गया। पिता की वेदना को उसने अनुभव किया और उनकी पीड़ा तथा शांतिमय क्षमा से वह रो पड़ा। बड़े होने पर उसने लिखा-- *'जो मनुष्य अधिकारी व्यक्ति के सामने स्वेच्छा पूर्वक अपने दोष शुद्ध हृदय से कह देता है और फिर कभी न करने की प्रतिज्ञा करता है, वह मानो शुद्धतम प्रायश्चित करता है।'* *कृपया चिंतन करें व अपने जीवन में उतारे तथा बच्चों को भी ऐसी शिक्षा दें।* 👌👌👌🙏🙏🙏 💐प्रस्तुतकर्ता- सपनों का सौदागर.... करण सिंह💐 *सदैव प्रसन्न रहिये।* *जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।* 🙏🙏🙏🙏🌳🌳🙏🙏🙏🙏🙏