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मलखू का परैन

Raghvendra rajapati 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक छोटे किसान की दुर्दशा और बड़े लोगो का बोल बाला 7521 0 Hindi :: हिंदी

अषाढ़ के दुसरे पखवाड़े का दूसरा दिन शाय के समय पुरबाई हवा अपने साथ नमी लपेट कर खेतो मे बिखेर रही थी लहलहाता धान का खेत खुशियाँ बिखेर रहा था।
     बासमती धान कि खुशबू मन मोह रही थी धान के छोटे छोटे पेड़ हवा के साथ ऐसे हिलोरे ले रहे थे मानो कोई सुंदर नचनारी कि कमर लचकोरे खा रही हो।
    शाम की शीतल हवा मन क़ो तृप्त कर रही थी तन से ज़ब टकराती तो रोम खड़े होकर सर्दी होने का अहसास करा रहे थे। पंछी चहक चहक कर अपने घोसलो कि ओर प्रस्थान कर रहे थे,पश्चिम दिशा से सूर्य अपनी लालिमा बिखेर कर आसमान कि सुंदरता मे चार चाँद लगा कर शुभ रात्रि का आगाज कर रहा था।
   वही खेत कि मेड़ मे खड़ा एक जिन्दा कंकाल मैला सा कुर्ता और पजामा पहने मल्खू हाथ मे एक परैना (बांस का डंडा जिसमे एक तरफ नुकली खींली लगी रहती है ) के सहारे मेड़ मे ठोक ठोक के बिल बंद करने का प्रयास कर रहा,मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि आज पुरबाई कि हवा अपने साथ मे अमृत रुपी पानी के फुहारे धान के खेतो मे बिखेरेगी। बस इसी उम्मीद से मेड़ मे जो भी चूहों ने गर्मी मे बिल बना रखा था,जिनसे कि पानी बह सकता था उन्हें बंद करने का प्रयास कर रहा था। साथ मे मन ही मन दुःखी भी था कि दिनरात मेहरारू और बेटा के साथ तकवाही करने के बाद भी बीती रात मे कोई धान चर गया था खुर से मालूम पड़ता था कि कोई भैस थी।
    गाय और बैलो कि रस्सी खोल दो मै लेकर जा रही हूँ,जैसे ही साँझ क़ो सब जानवर चले जाये जल्दी घर आ जाना - मल्खू कि पत्नी हीरा ने कहा।
   मल्खू बैलो कि रस्सी खोलकर हाथ मे लेली और गिरमा गले मे ही छोड़ दिया, रस्सी खुलते ही बैलो के साथ गाय भी भागते हुए घर कि ओर चल पड़े। पीछे पीछे हीरा भी सिर मे घाँस का गट्ठा रखे मल्खू कि आँखों से ओझल हो गए।
    मल्खू मेड़ मे बैठ गया,बीच बीच मे उठकर आवारा जानवरो क़ो देखता और अगड़ाई लेकर फिर बैठ जाता।
    सूरज ढल गया था रात्रि ने दस्तक दे दी थी चारो ओर मेढको कि टर्र टर्र और झींगुरो कि झी झी ने मल्खू क़ो घर जाने का सन्देश दे रहे थे,पर मल्खू के मन मे था कि अगल बगल मे कोई भी खेत अभी बोये नहीं है (क्यों कि पड़ोसियों के पास पानी का साधन था और वो रोपा लगाने वाले थे ) इसलिए नागपंचमी तक रखवाली करना जरूरी है।क्योंकि नागपंचमी तक अधिकतर लोग अपने जानवर आवारा ही छोड़ते है,और अभी नागपंचमी आने मे पूरे 5 दिन बांकी थे। हलाकि गाँव के जागीरदार ने छींद (गाँव मे ढ़ोल पीटकर,बिना बरेदी के कोई भी जानवर न जाये का आगाज ) डलवा दी थी,जिसको गरीब मजदूर तो फरमान समझ कर मान रहे थे पर उन्ही कि बिरादरी के लोग नागपंचमी तक सब आवारा छोड़ रहे थे।
   आसपास कोई गाय भैस तो नहीं है  मल्खू  उठकर निहारता,जहा भी थोड़ा संसय लगे हुर्र हुर्र कि आवाज लगाता और जानवरो क़ो भागने कि कोशिस करता।पर बार बार कल वाली भैस के बारे मे सोचता
   अंधेरा बढ़ रहा था दूर तक दिखाई देना तो मुश्किल पास भी धुंधला नजर आ रहा था,मल्खू अस्वस्थ होकर कि अब सम्पति खेत रुपी तिजोरी मे सुरक्षित है सोचकर पीछे मुड़कर देखता फिर आगे बढ़ता  मानो मल्खू का शरीर घर जा रहा था पर आत्मा खेत मे ही रखे जा रहा था।
  मल्खू का घर यही कोई एक कोस के आसपास रहा होगा, खेत उसकी आँखों के ओझल होते ही बड़े बड़े डग फान कर जल्द ही घर पहुंच गया।
  टटवा क़ो बगल मे खिसकाकर मल्खू खपरैल कि कच्ची परछईया मे झुक कर घुसा,सामने ही दरवाजे मे मल्खू का बूढा पिता अँधेरे मे आग के सामने मचिया मे बैठा बेसबरी से खाने का इतंजार कर रहा था। आग बीच बीच मे लपट मार कर जलने लगती तो बूढा उसमे भूसा और लतरेरी (जानवरो के खाने के बाद बची हरी घाँस ) डाल कर बुझा देता,जिससे धुआँ उठने लगता फिर चैन से बीड़ी कि फुक मार कर नाती से व्यारी के हाल पूछ लेता।
  इतना धुआँ करने के बाद भी मच्छर काटते तो उनको भी चमाट मारना पड़ता,चौमासा के कारण कच्ची परछईया मे यही कोई एक बीता ऊपर तक शीत चढ़ गया था जमीन मे बिना बोरा पिढवा के बैठना मुश्किल था मल्खू भी भीतर जाकर चूल्हा के बगल मे पिढवा लगाकर बैठने ही वाला था कि हीरा ने बैलो क़ो भूसा डालने का फरमान दे दिया।
    मल्खू लालटेन लेकर बैलो कि सार कि ओर चला गया आनन फानन भूसा डालकर सार मे धुआँ मचकाने लगा।
    बूढा बीच बीच मे नाती का नाम पुकार कर बहु से व्यारी के बारे मे पूछता,दो चार बार पूछने के बाद हीरा मुँह मरोड़ते हुए - दिनभर फुर्सत बैठे बीड़ी पीना है सुबह सूरज चढ़ते ही कलेवा कि गुहार और रात मे सूरज ढलते ही व्यारी खाना के सिवा और कोई कारज नहीं रहता, हम दिनभर काम करके थके हारे आते है जरा भी नहीं लगता ज़ब बन जायेगा तो दे दूंगी कहा।
    बूढा अपने मे ही बुदबुदाते हुए -किसी का थोड़े ही पीता हूँ,सरकार पूरे 350 रूपए का महीना देती है सो उड़ाता हूँ।मूछ मे ताव देते हुए ऐंठ कर बोला
     हीरा के पास इसका कोई जवाब न था।350रुपये मे महीने मे 50 कि बीड़ी कभी कभार 50 कि दारू बूढा पी जाता है,बाकि पूरे अढ़ाई सौ रुपये से ही तो घर का खर्च चलता है जो कोटे से राशन मिलता है सो अलग।बूढा बिगड़ कर देवरानी के चला गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे,वो तो बूढा क़ो बुलाने के लिए पांच हाथ का मुँह खोले बैठी है हीरा मन ही मन सोच रही थी।
     मल्खू हाथ मुँह धोकर वापस आ गया लालटेन का उजाला आते ही हीरा ने थाली मे रोटी और भाजी रख कर बूढा क़ो सरकाते हुए व्यारी करने क़ो कहा। साथ मे मल्खू भी गरम गरम रोटी भाजी के साथ चखने लग गया
     हीरा के मन मे था कि कही बूढा बिगड़ कर सुबह होते ही देवरानी के घर न चला जाये, इसलिए दोपहर के भात मे चीनी और दूध डालकर पका दिया और बेटा क़ो कटोरी मे देकर दद्दा क़ो देने क़ो कहा।
    बूढा खुशी खुशी व्यारी खाते हुए - देरी का खाना बड़ा बढ़िया होता है।
   रात्रि का दूसरा पहर शुरू होने क़ो आया था बरसात अपना रंग दिखा रही थी, बीच बीच मे तेज बिजली के साथ  गर्जना होती बारिश तेज होने से खपरैल से पानी टपकता तो हीरा उसमे कुछ बर्तन रख देती जिससे जमीन गीली न हो।
    रात मे एकाध बार धान देखना तो जरूरी ही है मल्खू ने हीरा से कहा,
    अरे नहीं नहीं इतनी बारिस मे कोई जानवर खेत मे थोड़े ही जायेगा, हा कोई भैस न हो तो, पर भैस जैसे कीमती धन क़ो रात मे भला कौन छोड़ेगा हीरा ने कहा।
    हीरा - मै तो पहले ही कह रही थी किसी से बिनती कर के पानी मांग लेते तो नागपंचमी के बाद हम भी धान रोप लेते,तो ये दिन रात कि तकवारी से पीछा छूटा रहता इस धान के चक्कर मे बेटा स्कूल तक नहीं जा पाता।
      मल्खू बड़ा स्वाभिमानी पांचवी पास पढ़ा लिखा था।जागीरदार जैसे बड़े लोगो के चंगुल मे फसना नहीं चाहता था, पर हीरा ये सब न समझती थी वो तो बस पड़ोसियों क़ो देख कर मल्खू क़ो सलाह दे देती।
      धान इस साल बहुत अच्छी है,कुदरत कि मेहरवानी रही तो यही कोई 20 खाड़ी तक होने मे कोई संसय नहीं है , फिर एक ट्यूबिल करवा लेंगे खेत मे ही और अगले साल से ही रोपा लगा लेंगे मल्खू पत्नी क़ो समझाते हुए कहा।
    हीरा भी मन ही मन प्रसन्न होकर हा मे हामी भर दी।
बारिश कि वजह से अब खेत जाने का मन मल्खू का भी नहीं था इसलिए वो भी खटिया बिछा के सो गया।
   रात्रि का तीसरा पहर ख़त्म होने क़ो आया रहा होगा कि,कुत्तो कि भौ भौ ने मल्खू कि नींद पर वार कर दिया मल्खू उठकर बाहर खुले आसमान क़ो निहारने लगा।आसमान साफ था तारे टिमटिमा रहे थे बारिश दूर जा चूकि थी मल्खू के मन मे आया कि कोई जानवर इस खुले मौसम के अवसर का लाभ न उठा ले,इसलिए बिना कोई देर किये अपना परैना लिया और जूता पहन कर धीरे से टटवा खोलकर खेत की तरफ निकल गया।
   काली अँधेरी रात थी। पर आसमान साफ होने कि वजह से कुछ दूर तक साफ नजर आ रहा था, मल्खू अपने मन मे सैकड़ो सवाल जवाब करते हुए पगडंडी से जाने लगा।कुछ समय पहले ही बारिश हुई थी इसलिए जूतों मे मिट्टी चिपक कर जुतो का वजन बढ़ा रही थी, साथ ही फिसलन हो रही थी इसलिए मल्खू जूते उतार कर हाथ मे ले लिया और तेजी से कुछ ही क्षणो मे मल्खू अपने खेत कि मेढ़ मे दाखिल हो गया।
खेत के उस किनारे कुछ आवाज सी आ रही थी जैसे कोई जानवर पानी मे चल रहा हो, मल्खू क़ो अंदेशा हुआ तो दौड़ कर उस छोर चला गया। उस छोर मे नजर पड़ते ही मल्खू के पैरो तले जमीन खिसक गई हाथो से परैना और जूता छूट कर जमीन मे गिर गए और मल्खू मूक सा काकभगोड़ा बन गया।
   खेत मे एक भैस सपरिवार धान की दावत उड़ा रही थी। एक भैस लगता तो, दूसरी गाभिन तथा तीसरी दो साल कि उसरा और एक पड़िया थी। काफ़ी खूबसूरत अच्छे घर कि लग रही थी।  ये नजारा देख कर मल्खू का कलेजा फट गया। क्यूंकि बरसात के बाद भैस का खुर जहा भी पड़ता वहा कि धान माटी मे मिल जाती।
   इस नज़ारे का गम मल्खू पल भर मे पानी कि तरह गटक गया और नयी ऊर्जा के साथ परैना उठाया और भैसो कि ओर धीरे धीरे गया।
   बड़ी भैस के पीठ मे परैना से पूरी ताकत के साथ बज्र सा प्रहार किया और गरियाते हुए अपनी आत्मा क़ो तृप्त कर लिया। परैना का प्रहार इतना तेज था कि भैस कि पीठ मे काले नाग जैसा उपट गया था। इससे पहले कि मल्खू दूसरा परैना मारता  सभी भैसे चौखड़ी भर कर चेतक बन गई।
  भैसो क़ो पहेटे हुए मल्खू उपन्हे पाव कही कही घुटनो तक मिट्टी मे धस जाता पर उसकी चाल कम न होती, भैसे भागते हुए कई बार पीछे मुड़ कर देखे और गाँव कि ओर लौटने क़ो सोचे पर पीछे मुड़ते ही मल्खू और उसका परैना एक कदम पीछे रखने कि इजाजत न देते।
   मल्खू गुस्से से आगबबूला भैसो क़ो गांव के बिपरीत दिशा मे लगभग दो अढ़ाई कोष पहेट दिया,और ये सोचकर कि भैस कि जात है हमेशा उल्टा ही जाती है अब वापस नहीं आएंगी।खुद वापस खेत आकर नुकसान का जायजा लेने लगा। भैस का एक एक खुर मल्खू का कलेजा छन्नी कर रहा था, नुकसान कम ही हुआ है खुद क़ो सात्वना देता खेत से बाहर निकल गया।
   भोर होने क़ो आयी थी सूरज लालिमा के साथ उगने क़ो तत्पर था, मल्खू जूते एक गढे के पानी मे धोकर पहन लिया और परैना कंधे मे रख कर घर कि ओर रवाना हो गया।
    मल्खू खेत से कुछ ही कदम चला रहा होगा कि।सामने से गाँव के बड़े इज्जतदार शमसेर सिंह आते दिखाई दिए इलाके के बड़े रौबदार आदमी थे 80-90 एकड़ जमीन थी 10 -15 एकड़ तो अधिया तेहरा मे दिए रहते थे। एक लड़का शहर के बैंक मे बाबू था और छोटी बहू गाँव के ही स्कूल मे शिक्षिका थी, बड़े रुतवे कि जिंदगी थी कभी कभार ही घर से बाहर निकलना होता था।
    इसलिए कीचड़ की पगडंडी मे आते देख मल्खू क़ो अचरज हुआ, फिर भी पास आकर मालिक पावलागो कहकर अभिवादन किया।
   शमसेर सिंह जी ने ख़ुश रहो कहकर मल्खू का हाल पूछा।
  मल्खू आपकी दया है मालिक कहकर,आभार व्यक्त किया और सुबह सुबह कीचड़ मे आने कि वजह पूछा।
  शमसेर सिंह - मल्खू हमारी भैस रात क़ो खूटा उखाड़ कर भाग गई और पूरी रात हो गए अभी तक वापस नहीं आयी घर मे दो महीना कि पड़िया डेढेयाय रही है बस उसी की तलाश कर रहा हूँ।
   मल्खू क़ो एक पल लगा कि कही वही भैस तो नहीं थी,फिर स्वयं से - अरे नहीं नहीं! इनकी तो एक भैस थी वो भी खूटा उखाड़ कर आयी है तो गले मे गिरमा लगा होता वो नहीं रही होंगी।
    शमसेर सिंह - मल्खू तुमने कही कोई भैस देखी है?
   मल्खू - भैस तो मालिक देखी है अभी ही पहेट के आ रहा हूँ मेरी पूरी धान चौपट कर दीं है।
    शमसेर उत्सुकता बस - किस तरफ पहेट आया है
     मल्खू - मालिक वो आपकी भैस नहीं थी, वो तो चार नग थी एक लगता, एक ग्याभन और दो साल कि एक उसरिया साथ मे छोटी पड़िया और उसके गले मे कोई खूटा गिरमा भी नहीं था।
     शमसेर अंदर ही अंदर मल्खू क़ो गाली के साथ जाने क्या क्या सोच रहा था। फिर भी शांत मन से - मल्खू हो सकता है उन्ही तीन भैसो मे मेरी भी मिल गई हो,और गिरमा रास्ते मे गिर गया हो या कोई छोड़ लिया होगा।
      मल्खू क़ो शमसेर कि बातो मे सच्चाई लग रही थी,तो मल्खू हामी भर दी और शमसेर क़ो जहा भैसो क़ो छोड़ा था बता दिया।
    शमसेर उसी दिशा मे तीखी निगाहो से देखते हुए आगे बढ़ गया, और यहाँ मल्खू अपने घर आ गया।
    रात क़ो कितने बखत चले गए थे अभी आ रहे हो सब ठीक तो था खेत मे,हीरा ने गाय दुहते हुए मल्खू से पूछा।
    मल्खू ने खेत और शमसेर की सारी बात बता डाला फिर बैलो क़ो भूसा डालकर, दातुन घिसकर चूल्हे के बगल मे बैठ कर कलेवा का इंतजार करने लगा।
   हीरा रोटी सेकते सेकते मन ही मन गुना घोंटकर मल्खू से कहा - हो न हो वो सभी भैसे शमसेर मालिक कि ही रही होंगी।
   मल्खू रौब झाड़ते हुए - अरे होंगी तो होंगी, किसी का नुकसान करेंगी तो ऐसा ही करेगा और मै नहीं डरता किसी से "न अन्याय करता हूँ न अन्याय का साथी हूँ"
   हीरा क़ो डर था कि अगर शमसेर कि भैसे नहीं मिली तो पता नहीं गाँव न छोड़ना पड़ जाये। मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी कि शमसेर कि भैसे मिल जाये।
   सूरज सिर पर चढ़ गया था। गर्मी के साथ उमस महसूस हो रही थी, दोपहरी का समय शुरू हो गया था मल्खू बैल गायो क़ो भूसा चारा देकर खेत कि ओर जाने ही वाला था कि।
   सामने से पसीने मे तर,गोरा चेहरा काला पड़ा हुआ,सफेद कुर्ता माटी मे सना और जूते कीचड़ मे लीन,एक दम गुस्से से लाल पीला शमसेर दूर से ही चिल्लाकर -
    मल्खू अगर मेरी भैस शाम तक घर नहीं आयी तो अच्छा नहीं होगा हीरा सुनते ही सहम गई है। प्रभु अब क्या होगा,
   मल्खू - मालिक मेरा क्या कुसूर है भला मै क्यों आपकी भैस ढूढू ?
   शमसेर - जो भैसे तूने पहेटी थी मेरी ही थी।
   सुनकर मल्खू भी थोड़ा डरा पर फिर भी साहस कर के बोला - रात क़ो आवारा छोड़ेंगे और किसी का नुकसान करेंगी तो कोई थोड़े न सहन करेगा।
    शमसेर कोर्ट अदालत और कई प्रकार कि धमकी देकर चला गया।
   मल्खू के घर के सामने लोगो का जमावड़ा लग गया, लोग ख़ुशफुस करते कुछ मल्खू क़ो धुतकारते तो कुछ सराहना करते।
    यहाँ हीरा मल्खू क़ो खाये जा रही थी कि।अगर पहेटी ही थी तो बयान देने कि क्या जरूरत थी,इस बात का पछतावा मल्खू क़ो भी था पर हीरा क़ो कैसे समझाये कि शमसेर झूठ बोलकर सच जान लिया है।
    आखिर हीरा के कहने पर मल्खू शमसेर कि भैसो क़ो ढूढ़ने निकल पड़ा मन ही मन " किसे पता था कि जो रायता मैंने फैलाया था उसे मुझे ही साफ करना पड़ेगा पता होता तो कम ही फैलता "
     भैसो कि तलाश करते करते,मल्खू गाँव से लगभग चार कोस दूर एक गाँव के कुआ मे, पानी पीकर बरगद के पेड़ के नीचे परैना सिर के नीचे रख कर लेट गया लेटते ही कब आंख बंद हो गई पता नहीं चला।
     ज़ब आंख खुली तो सामने एक बुजुर्ग आदमी,सफेद कुर्ता और परदनी मे, गोरा रंग,बाल पके,माथे मे चन्दन का लेप किये कोई ब्राम्हण जान पड़ते थे।
    बुजुर्ग आदमी ने मल्खू क़ो देखकर ही भाप लिया था कि, बेचारा किसी गंभीर परेशानी से ग्रसित है। फिर भी उन्होंने मल्खू से परेशानी का कारण पूछा। मल्खू एक सांस मे ही सारा ब्रातांत बता दिया।
     बुजुर्ग मुसुकुराते हुए के मल्खू से - रोटी खाया दोपहर मे कि नहीं ?
      मल्खू नहीं मे सिर हिलाया।
    बुजुर्ग मल्खू क़ो अपने साथ आने क़ो कहा,
   मल्खू के पास कोई और बिकल्प नहीं था इसलिए बुजुर्ग आदमी से बड़ी उम्मीद लगा कर पीछे पीछे चल दिया।
    कुछ ही देर मे बुजुर्ग आदमी एक अटारी वाले बड़े, रंगे,पुते घर मे घुसा मल्खू घर देख कर मन ही मन सोचने लगा बहुत बड़े आदमी लग रहे है, मेरी मदद जरूर करेंगे। पर क्या मदद करेंगे पता नहीं??
     बुजुर्ग आदमी लकड़ी कि कुर्सी मे बैठते हुए मल्खू क़ो बोरा मे बैठने क़ो इशारा किया।मल्खू बोरा बगल मे खिसकाकर जमीन मे ही बैठ गया, कुछ ही पल मे एक आदमी भीतर से थाली मे खाना और लोटे मे पानी लाकर मल्खू क़ो दिया।
    चिंता मत करो सब ठीक हो जायेगा सांत्वना देते हुए आराम से भोजन करने क़ो बुजुर्ग ने कहा।
    मल्खू मदद कि उम्मीद से जल्दी जल्दी खाना खा गया दोबारा लेने से भी मना कर दिया, हाथ और थाली धो कर बगल मे उल्टा कर टिका दिया और मदद की आश से बुजुर्ग क़ो निहारने लगा।
    बुजुर्ग कुर्ता कि जेब से केहरिया निकाल कर सरोता से सुपाड़ी काटते हुए - तुमको शमसेर ने भैस पहेटते हुआ देखा था।
      मल्खू नहीं मे एक बार फिर सिर हिलाया।
   तो शमसेर क़ो कैसे पता कि जो भैसे तुमने पहेटा है उसकी है - बुजुर्ग ने मल्खू से पूछा
    मल्खू -  मालिक मैंने बताया था
   बुजुर्ग - क्या तुम शमसेर कि भैसो क़ो पहले से पहचानते थे
    मल्खू - नहीं मालिक
  तो शमसेर या फिर तुम कैसे कह सकते हो की जो भैसे तुमने पहेटी है शमसेर की थी - बुजुर्ग ने कहा
  मल्खू तुम घर जाओ अगर कोर्ट आदालत का डर शमसेर दिखा रहा है तो मत डरो मै हूँ तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा - बुजुर्ग ने दोबारा हस कर कहा।
   मल्खू क़ो बुजुर्ग कि बात मे दम लगा और बात मान भी गया,पर हीरा क़ो कैसे समझायेगा सोचने लगा क्योंकि हीरा डरती थी।
इसलिए मल्खू दबे स्वर मे बुजुर्ग से - मालिक कोर्ट अदालत तो बाद मे है पहले तो गाँव मे रहना है।
   बुजुर्ग - ये बात भी ठीक है
      कुछ देर सोचकर, इसका भी उपाय है तुम चाहो तो मल्खू इस बार हाँ मे सिर हिलाया।
    बुजुर्ग मल्खू क़ो सुपाड़ी देते हुए अपने पीछे आने क़ो कहा।
    बुजुर्ग भैसो कि सार मे घुसा पीछे पीछे मल्खू भी अंदर चला गया,ऊपर टीने कि छत और नीचे पत्थर कि पटिया बिछी वो सार भैसो के लिए किसी महल से कम नहीं लगती थी। अंदर करीब दस पंद्रह नग भैसे सानी खाकर पागुर ले रही थी।
     बुजुर्ग - मल्खू तुमने जिस बनावट कि भैसे पहेटी थी,छाट लो और शमसेर क़ो ले जाकर दिखा दो कि मैंने इन्ही भैसो क़ो पहेटा था और पूछ भी लेना क्या ये आपकी है?
मल्खू क़ो तरकीब पसंद आयी और बुजुर्ग का आभार व्यक्त कर के,उन्ही के नौकर के साथ चार भैसे उसी रंग रूप कि लेकर अपने गाँव कि ओर चल पड़ा।
    यही कोई दो घंटे के भीतर गाँव के मेड़े मे आ पहुचे।मल्खू ने नौकर क़ो यही रुकने क़ो कहा,और जल्द ही शमसेर क़ो भैसे दिखा कर वापस आने वादा किया।
   सूरज ढलने मे तनिक ही कसर रह गई थी लोग खेतो से घरों कि तरफ बढ़ रहे थे,मल्खू अपने मन मे हजारों सवाल समेटे शमसेर सिंह के घर पहुंच गया।मालिक-मालिक,आवाज लगाया तो शमसेर सिंह बाहर निकल कर आये।
    मल्खू मायूस स्वर मे - मालिक मै भैसे शाम से पहले ढूढ लाया ये रही।
   शमसेर हॅसते हुए अरे बौरा गया है क्या, मेरी भैसे तो दोपहर मे ही आ गई थी ये अब तू किसकी भैसे ले आया जा जहा से लाया वही छोड़ आ।
मल्खू सुनते ही ख़ुश हो गया। पर बाहर से मयूस स्वर मे हामी भर कर, भैसो क़ो डहराते हुए दबे पांव निकल लिया।
    पल भर कि देर किये बिना नौकर के साथ मल्खू बुजुर्ग आदमी के घर आ पंहुचा, बुजुर्ग क़ो नतमस्तक होकर आभार व्यक्त कर के वापस घर आने लगा, तो बुजुर्ग आदमी रात मे रुक कर सुबह जाने क़ो कहा।
    मल्खू आभार करते हुए पत्नी चिंता मे होंगी सुबह का निकला हूँ कहकर चल दिया।
   एक डेड़ घंटे के भीतर ही,व्यारी कि बेरा तक घर आ पंहुचा।
  पूरी बात बूढ़े पिता के साथ हीरा क़ो बताया,सभी भगवान के साथ उस बुजुर्ग आदमी का आभार व्यक्त कर,खुशी खुशी व्यारी कर सब सो गए l

                                        👏👏👏👏👏  आभार

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