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इच्छा मृत्यु

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक इच्छा मृत्यु, जितेन्द्र शर्मा, परीक्षितगढ़ मेरठ 90203 2 5 Hindi :: हिंदी

कहानी- इच्छा मृत्यु
लेखक- जितेन्द्र शर्मा
08/01/2023

लाला कृपाराम भले आदमी थे। उनकी एक छोटे नगर में दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं की बडी दुकान थी। वही जो उत्तराधिकार में उन्हें अपने पिता से प्राप्त हुई थी। अपने पिता की तरह ही पूरे नगर में उनका सम्मान था। धर्म-कर्म से उनका कुछ अधिक ही लगाव था। वह सदैव कहते कि धंधा कुछ भी हो लेकिन उसमें धर्म होना चाहिए । नगर में जब भी कोई धार्मिक आयोजन होता तो मुख्य दानदाताओं में उनका नाम होता। नगर में प्रतिवर्ष रामलीला का आयोजन होता था जिसकी कमेटी के वे वर्षों से अध्यक्ष थे। पूरे नगर से चंदा एकत्र किया जाता और रामलीला के आयोजन के पश्चात यदि उसमें कुछ कमी रहती तो लाला कृपाराम व नगर के कुछ और गणमान्य व्यक्ति मिलकर उसको पूरा करते। बहुदा रामलीला संपूर्ण होने के बाद कुछ धनराशि बच ही जाती थी जिसे लाला कृपाराम को सौंप दिया जाता था। अगले वर्ष रामलीला आयोजन के समय कृपाराम उस धनराशि को एक वर्ष के ब्याज सहित कमेटी को सौंप देते थे। यद्यपि वह इस धन का उपयोग अपने व्यापार में नहीं करते थे। वह उसे राम का खजाना कहते और तिजोरी में एक अलग निश्चित स्थान पर रखते। उनका मानना था कि राम की कृपा से ही उनके कारोबार में दिन-रात वृद्धि हो रही है। 
***
लाला कृपा राम अब वृद्ध हो चले थे। उनके दो पुत्र थे जिन्होंने अपना कारोबार पास के शहर में शुरू किया था और अब शहर के बड़े व्यापारी माने जाते थे। बड़े बेटे का कपड़े का थोक व्यापार था तथा छोटे बेटे ने बड़े भाई से और चार कदम आगे चलकर एक लोहे का सामान बनाने वाली फैक्ट्री लगा ली थी। 
लाला की दुकान पर भी कई नौकर चाकर थे तथा गल्ला संभालने के लिए एक लड़के को मैनेजर रख लिया था, जो बड़े व्यवस्थित ढंग से दुकान को चला रहा था। लाला अब एक तरह से दुकान के बंधन से मुक्त ही थे जब उनकी इच्छा होती दुकान चले जाते जब मन होता वापस आ जाते।
प्रतिवर्ष की तरह रामलीला का समय आन पहुंचा था। उसी उपलक्ष्य में रामलीला कमेटी की सभा थी जिसमें  रामलीला के आयोजन पर चर्चा करने के बाद निकट भविष्य में नगर में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव के बारे में चर्चा शुरू हुई। लाला गिरधारी लाल जोकि लाला कृपाराम के मित्र भी थे और नगर के व्यापार संघ के अध्यक्ष भी। उन्होंने लाला कृपाराम के सम्मुख प्रस्ताव रखा कि क्यों ना इस बार लाला कृपाराम नगर के चेयरमैन पद का चुनाव लड़े। जिसका समर्थन रामलीला कमेटी के सभी सदस्यों ने जोर-शोर से किया। लाला राजनीति के पचड़े दूर रहना पसंद करते थे किन्तु उनके मित्र और हितैषी बार बार आग्रह कर रहे थे। इस पर लाला कृपाराम बोले कि मैं अपने दोनों बेटों से बात करूंगा, यदि वह सहमत हुए तो मैं इन्कार नहीं करूंगा।
घर पहुंचकर लाला ने अपने बेटों से बातचीत शुरू की। बड़े बेटे आदित्य बंसल का अखंड विश्वास था कि उसके पिता जो भी निर्णय करेंगे वह उचित ही होगा। पूछने पर उसने वैसा ही उत्तर दिया- "आप जो उचित समझे करें फिर चाचा गिरधारी लाल आपके मित्र हैं वो चाहते हैं तो ठीक ही रहेगा। मुझे आपके चुनाव जीतने में कोई संकाय नही।" किंतु छोटा बेटा विजय बंसल चुनावी राजनीति से सदैव दूरी बनाये रखना पसंद करता था बोला- "पिताजी हम राजनीतिक उठापटक से दूर ही रहे तो अच्छा। यह अच्छे लोगों का काम नहीं है। शेष आप जैसा चाहे।"
बड़े बेटे ने हस्तक्षेप किया- "किंतु यदि अच्छे लोग राजनीति में जाएंगे ही नहीं तो राजनीति अच्छी होगी कैसे? मेरा विचार तो है कि पिताजी को चुनाव लड़ना चाहिए।"
छोटा कभी अपने बड़े भाई से बहस नहीं करता था अतः बोला- "भैया आप कहते हैं तो ठीक ही होगा, वैसे भी दुकान तो अब मैनेजर ने अच्छी प्रकार सम्हाल ही ली है पिताजी यदि चाहे तो चुनाव लड़ लें किन्तु राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है, इसलिये मेरा विरोध है लेकिन हमारे स्नेहीजन ऐसा चाहते हैं तो मैं भी आपके निर्णय के साथ हूं।"
***
जैसे ही लाला कृपाराम ने अपने मित्रों को अपनी सहमति की सूचना दी, कुछ समय में ही यह बात नगर के बच्चे बच्चे की जबान पर थी। चर्चा शुरू हुई और यहां तक पहुंच गई कि यदि लाला चुनाव लड़ते हैं तो उन्हे कोई नहीं हरा सकता। यह बात तत्कालीन चेयरमैन लाला गोवर्धन के कान तक भी पहुंची और जैसे ही उन्होंने सुना उनके हाथों के तोते उड़ गए। वह जानते थे कि यदि लाला कृपाराम उनके सामने लड़ते हैं तो कृपाराम का जीतना लगभग तय है। अतः अगले दिन उन्होंने बिरादरी की पंचायत बुला ली जिसमें लाला कृपाराम और उनके साथी भी सम्मिलित हुए। चर्चा शुरू हुई तो लाला गोवर्धन ने कहा कि मैं पांच वर्ष तक चेयरमैन पद पर रहकर अपनी बिरादरी और व्यापारी वर्ग की तन मन से सेवा करता रहा हूं फिर इस बार बिरादरी मुझे क्यों नहीं चुनाव लड़ा रही।
चर्चा शुरू हुई, पक्ष विपक्ष ने अपने अपने तर्क दिये किन्तु अधिकतर लोग लाला कृपाराम के पक्ष में थे। अंत मे जब लाला गिरधारी लाल ने कहा कि पूरे नगर में लाला कृपाराम जैसा धार्मिक और ईमानदार व्यक्ति दूसरा नहीं है। और इस बार बिरादरी पूरी तरह से लाला कृपाराम को ही चुनाव लड़ाने के पक्ष में है। यह बात लाला गोवर्धन दास को पूरी तरह से खटक गई। और उन्होंने वह कर डाला जो नहीं करना चाहिए था। अपने विरोधी की इतनी प्रशंसा सुनकर वह अपना आपा खो बैठे और तड़क कर बोले-"आप किस आदमी को ईमानदार कह रहे हैं? यह तो रामलीला जैसे धार्मिक कार्य में भी घोटाला करने से बाज नही आते। अगर इन्होंने धार्मिक कार्यों का पैसा ना खाया होता तो आज शहर में इनकी फैक्ट्री और थोक की दुकान न होती।"

वर्तमान चेयरमैन से इस प्रकार की असभ्यता की आशा किसी को न थी। इन शब्दों को सुनकर पूरी सभा स्तब्ध रह गई। लाला कृपाराम  कुछ छण तक चेयरमैन के चेहरे को देखते रहे। फिर तड़प कर बोले- "मैं बेईमान हूँ! मैंने रामलीला के धन को खाया?"
"हां मैं तुम्हें ही कह रहा हूं। यदि ना खाया होता तो आज शहर में इतना बड़ा कारोबार न होता!" चेयरमैन ने पुनः क्रोध से फुफकारते हुए कहा। जिसकी भयंकर प्रतिक्रिया हुई।
लाला कृपाराम ने अपना एक हाथ अपने हृदय पर रखा और ऊपर की ओर देखते हुए बोले- "हे ईश्वर आप देख रहे हैं! कि मुझ पर क्या आरोप थोपा जा रहा है! मैं यह कलंक लेकर कैसे जीऊँ? नहीं! नही! मैं यह सब नहीं सह सकता। हे राम! से राम! यदि मैं निर्दोष हूं मुझे अभी अपने चरणों में बुला ले।"
एक छण के लिये उनके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट आई और फिर शरीर निस्तेज होकर कुर्सी के सहारे लटक गया जिस पर वह बैठे थे। वहां उपस्थित सभी लोग सन्न रह गये। लोगों ने इच्छामृत्यु शब्द तो सुना था किन्तु वे भी कभी इसके स्वयं साक्षी बन जायेंगे यह सोचा न था। एक ही विचार सबके मन में कोंध रहा था कि लाला कृपाराम महान आत्मा थे जो अब उनके बीच नहीं हैं।
आत्मा परम में विलीन होकर परमात्मा हो चुकी थी।
***
आज लाला कृपा राम की की तेहरवीं थी। नगर व दूर-दूर के गणमान्य व्यक्ती आये हुए थे। सभी रस्में पूरी होने के बाद जब अतिथि गण चले गए तो गिरधारी लाल ने बड़े बेटे आदित्य से कहा- "बेटे लाला की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता किंतु उनके शेष कार्य तो करने ही होंगे। पिछली तीन पीढ़ियों से रामलीला कमेटी के कर्ता धर्ता तुम्हारे पुरखे ही रहे हैं।कमेटी के सदस्यों की इच्छा है कि आगे भी तुम्हारा परिवार ही इस नेक काम को करें।"
"क्षमा करें चाचा जी न तो मुझ में पिताजी जैसा धैर्य है और ना ही साहस! आप हमसे जैसा भी सहयोग चाहेंगे, हम करेंगे! लेकिन अब आप किसी और को इस काम के लिए चुन लें।"
लाला गिरधारी लाल ने आशा भरी नजरों से छोटे बेटे विजय की ओर देखा।
"आप चिंता ना करें चाचा जी, जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा। भैया पिताजी के प्रत्येक दायित्व को पूरा करेंगे। वह कमेटी के अध्यक्ष भी बनेंगे और चेयरमैन का चुनाव भी लड़ेंगे।" विजय ने अपने बड़े भाई की और सम्मान भरी नजर डाली और निश्चय भरे स्वर में कहा।
"किंतु कारोबार!"आदित्य ने अपने छोटे भाई को स्नेह भरी नजरों से देखते हुए कहा
"वह सब हो जाएगा भैया! कारोबार अच्छा चल रहा है और चलेगा! आप निश्चिंत होकर पिताजी के दायित्व को पूरा करिए! चुनाव लड़िये और अपने नगर को ऐसे दुष्ट व्यक्ति में के हाथों में जाने से बचाइए जिसके कारण हमारे पिता को जान देनी पडी।" विजय अपने क्रोध पर नियंत्रण करने का प्रयास करते हुए बोला।
गिरधारी लाल निश्चित होकर चले गए।
***
विजयदशमी का दिन, रामलीला मैदान में नवनिर्वाचित चेयरमैन लाला आदित्य बंसल ने अग्निबाण जलाकर रावण का दाह संस्कार किया। आतिश बाजी के साथ पूरा रामलीला मैदान लाला कृपा राम अमर रहे के नारे से गूंज उठा। 
***
सम्पूर्ण

Comments & Reviews

Jitendra Sharma
Jitendra Sharma Good story.

1 year ago

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Jitendra Sharma
Jitendra Sharma अति सुन्दर कहानी।

1 year ago

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