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पुन्नो रानी

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक जितेंद्र शर्मा की कहानी, Punno Rani, पुन्नों रानी, फुग्गा, Fugga, 90108 0 Hindi :: हिंदी

कहानी – पुन्नों रानी।
लेखक - जितेन्द्र शर्मा
तिथी - 15/01/2023


हमारे समाज में विवाह - शादियों का अलग ही अर्थशास्त्र है। दहेज से लेकर दावत तक का आयोजन जहां विवाह वाले परिवारों की आर्थिक व्यवस्था को झकझोर देता है वही एक प्रकार से बाजार व दहेज में दिये जाने वाले सामान बनाने वाली कम्पनियों के लिये विवाह उत्सव बूस्टर डोज की तरह है, जो वर्ष भर इनकी इम्युनिटी को उच्च स्तर पर बनाये रखते है।
दयाचंद की गिनती उनके गांव में मझोले किसानों में होती थी। उनके पास बीस बीघे जमीन थी। भगवान ने दो बेटे दिए जिन्हे उन्होंने बड़े जतन से पढ़ाने का प्रयास किया ताकि वह पढ़ लिखकर कहीं सरकारी नौकर हो जाए और कोई बेटी वाला उनके बेटों को दामाद बनाने के बदले मोटा माल दहेज में दे दें। बड़े बेटे का नाम उन्होंने फकीरा रखा था, जिसे प्राथमिक विद्यालय में दाखिला करते समय हेड मास्टर ने बदलकर फकीरचंद कर दिया था। किसी प्रकार से फकीर चंद ने दसवीं कक्षा पास कर ली। यद्यपि वह तीसरे प्रयास में सफल हुआ था और तीसरी श्रेणी मे भी। फिर भी सफलता सफलता ही होती है। वह बड़े शान के साथ अपने उत्तीर्ण होने की सूचना लेकर घर आया और अपने मां बाप के सामने घोषणा कर दी कि वह अब आगे नहीं पढेगा।
दयाचंद को भी यह जिद न थी की उसका बेटा बहुत ज्यादा ही पढ़े-लिखे। इक्कीस साल का जवान था। उसकी आयु कमाने की हो चुकी थी अतः वह तो बस यह चाहता था कि उसे किसी तरह कोई सरकारी नौकरी मिल जाए और वह उसका विवाह कर दे। वह इस प्रयास में लग गया और इसका प्रतिफल भी उसे जल्दी ही मिल गया। एक व्यक्ति ने कुछ धनराशि लेकर उसे पुलिस में भर्ती करा दिया।
***
प्रशिक्षण के बाद जिस थाने में उसे नियुक्ति मिली उसी थाने में  एक विपत सिंह नाम के हैड कांस्टेबल थे। रिश्वतखोरी और जुगाड़बाजी में उनका कोई सानी न था। खूब कमाते और अफसरों को भी खुश रखते। उनके एक बेटी और तीन बेटे थे। बेटी पुन्नो रानी सबसे बड़ी थी और अब शादी योग्य हो गई थी। विपत सिंह बेटी के लिये वर तलाश रहे थे।
उन्होंने जब कांस्टेबल फकीर चंद को देखा तो उन्हें उसमें उनका दामाद बनने के सारे गुण नजर आये। भले ही वह सामान्य सा नजर आने वाला था किन्तु सज्जन नोजवान था और उनके ही विभाग मे सरकारी नौकर था। विपत सिंह ने बात चलाई तो फकीरचन्द ने साफ कह दिया कि विवाह के बारे उसके पिता ही निर्णय लेंगे। बिना देरी किये वह फकीर चन्द के गांव पहुंचे और सफल होकर लौटे। फकीर चन्द के पिता को मनचाहा दहेज चाहिये था और विपतसिंह को दामाद खरीदना था। सौदा तुरंत पट गया। विपत सिंह ने अपने घर पहुंचकर अपनी पत्नी को जब यह बताया कि उन्हें बेटी के लिये ऐसा वर मिल गया है जो खुशी खुशी उनकी बेटी की सेवा करेगा, तो खुशी से पुन्नो रानी की आंखें चमक उठी। वह जानती थी कि उसके पिता उसके विवाह की बात कर रहे हैं, इसलिए जिज्ञासा वश वह छुपकर सुन रही थी।
दो महीने में ही विवाह सम्पन्न हो गया और पुन्नो रानी बहु बनकर फकीर चन्द के गांव पहुंच गई। विदाई के समय ही उसके माता पिता ने उसे साफ साफ बता दिया था कि उन्होने मुंह मांगी कीमत पर दामाद खरीदा है। इसलिये ससुराल में किसी से दबने की आवश्यक्ता नहीं है। वहां किसी की सेवा नहीं करनी है बल्कि अपनी सेवा करानी है। अतः पुन्नो रानी ने ससुराल में पन्द्रह दिन में ही वह भौकाल मचाया कि फकीर चन्द के पिता को दहेज का सामान अब जहरीले नाग के समान लागने लगा। उन्होने पुन्नों रानी के पिता से शिकायत की तो उन्होने अपनी बेटी को समझाने के स्थान पर उन्हे ही खरी खोटी सुना दी। कोई रास्ता न देख वह अपनी पुत्रवधु पुन्नो रानी को दहेज के सामान सहित अपने बेटे के पास पहुंचा आये।
***
पुन्नो रानी यही तो चाहती थी। अब वह अपने पति के पास थी। पति भी ऐसा जो उसकी प्रत्येक इच्छा को पूरा करना अपना कर्तव्य समझता था। उसके लिए पुन्नो रानी की प्रत्येक बात आदेश की तरह होती जिसे आंख बंद करके मानता था। एक तरह से उसने अपना यही भाग्य मान लिया था कि उसे पुलिस विभाग के साथ अपनी पत्नी की सेवा भी करनी है। इस प्रकार पन्द्रह वर्ष बीत गए। पुन्नो रानी ने कभी अपने पति को कोई भाव न दिया था। उसे सदैव अपने पति से शिकायत ही रहती कि वह दूसरे पुलिस वालों की तरह या उसके अपने पिता की तरह ऊपर की कमाई ठीक प्रकार से क्यों नहीं करता? उधर पन्द्रह वर्ष बाद भी फकीरचंद कांस्टेबल ही था। उसकी कोई प्रगति नहीं हुई थी और इस बात से पुन्नो रानी को और ज्यादा चिढ थी। वह फकीर चंद को ताना देती कि उसके पिता भी तो कांस्टेबल ही भर्ती हुए थे। खूब ऊपर की कमाई की तथा शान के साथ दरोगा पद से रिटायर हुऐ। फकीर चंद खूब कोशिश करते पर न तो कमाई बढ़ती और न पद बढ़ता। रिश्वत लेना वह पाप समझते थे। अतः वह पत्नी को कभी खुश न कर पाये। लेकिन उनके विभाग व बाहर भी एक ईमानदार व्यक्ति के रूप मे उनका बड़ा सम्मान था। 
***
एक दिन फकीरचंद की ड्यूटी उसके एक साथी कांस्टेबल देवेंद्र सिंह के साथ शहर के बाहरी चौराहे पर लगी थी। शाम होने वाली थी उसका साथी उसे चौराहे पर ही छोड़कर चाय पीने के लिए कहकर चला गया। तभी एक पुलिस का खबरी उसके पास आया और फकीर चंद के कान में कुछ कहा। फकीर चंद की आंखें चमक उठी। उस खबरी ने उसे नामी चोर फुग्गा के बारे में बताया था जिसकी पुलिस को बरसों से तलाश थी। किंतु वह पुलिस के हाथ न आ रहा था। उस चोर का असली नाम तो कुछ और था लेकिन वहां की स्थानीय भाषा में फुग्गा एक ऐसे पक्षी को कहा जाता है जो सीधा आकाश से अपने शिकार पर झपटता है और शिकार को चोंच में दबाकर  तेजी से आकाश की ओर उड़ जाता है। फुगा चोर का भी कुछ ऐसा ही काम था। वह चुपचाप किसी के घर या दुकान में घुस जाता और कीमती सामान उठाकर फुग्गा पक्षी की तरह फुर हो जाता। उसके खिलाफ वहां के थाने में बहुत सारी शिकायतें थी, लेकिन वह पुलिस के हाथ न आ सका था। आए दिन चोरी करता और गायब हो जाता। उसका न कोई घर परिवार था न निश्चित ठिकाना। कोई नहीं जानता था कि वह कहां रहता? कब आता? और कहां गायब हो जाता था। 
अब जब फकीरचंद को पता लगा कि फुग्गा चोर वहीं पास में एक पान की दुकान पर बैठा हुआ सिगरेट पी रहा है, तो फकीरचंद को यह बड़े अवसर की तरह लगा। उसने सोचा कि वह अगर फुग्गा को पकड़ लेता है तो उसकी तरक्की पक्की। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई किंतु उसका साथी कहीं दिखाई न दिया। देवेंद्र कहीं दूर चाय पीने चला गया था। वह सोच रहा था कि अपने साथी की प्रतिक्षा करे या अकेले जाकर पकड़ने की कोशिश करें? देर होने से फुग्गा के गायब हो जाने की संभावना थी। उसने अपनी राइफल कंधे पर टांगी और खबरी के बताए हुए स्थान की ओर चल दिया। छुपता छुपाता वह पान की दुकान तक पहुंचा। जैसे ही फुग्गा ने उसे देखा वह तेजी से दौड़ा। फकीर चन्द ने भी दौड़ लगा दी।आगे आगे फुग्गा और पीछे पीछे फकीर चन्द। फुग्गा चोर तेजी से जंगल की ओर दौड़ रहा था। फकीरचंद को तेज दौड़ने की न आदत थी और न हिम्मत। ऊपर से कंधे पर लटकी राइफल का वजन उसे उसे तेज दौड़ने में बांधा पहुंचा रहा थी। वह जल्दी ही थक गया और पीछे छूट गया। दोनों अब हरे भरे खेतों के बीच थे। जब फुग्गा ने देखा की फकीरचंद दूर रह गया है तो वह रुका और फकीरचंद की ओर मुड़ कर उसकी हंसी उड़ाने लगा। फकीरचंद ने फिर प्रयास किया, उसने फिर दौड़ने की कौशिश की लेकिन जैसे ही वह उसके पास पहुंचने का प्रयास करता फुग्गा तेजी से आगे बढ़ जाता। अब फकीरचंद पूरी तरह से थक चुका था। आगे एक छोटी चट्टान थी। जैसे ही फुग्गा चट्टान से नीचे कूदा, उसके पीछे पीछे फकीर चन्द भी कूद गया किंतु उसका एक पैर कहीं उलझा और वह धड़ाम से चट्टान पर गिरा। उसकी नाक पत्थर से टकराई और खून बहने लगा। नाक के अतिरिक्त भी कई जगह चोट लगी थी। फुग्गा ने उसे गिरते देखा तो दौड़कर वापस आया और उसे उठाने की कोशिश की। फकीर चन्द को काफी चोट लगी थी। तब तक अंधेरा हो चुका था और वहां कोई नहीं था जो फकीरचंद की सहायता कर सकें। फुग्गा उसके पास आया और सहारा देकर फकीर चन्द को उठाया। अपनी शर्ट को फाड़कर फकीर चन्द के शरीर पर कई जगह पट्टी बांधी। फकीर चन्द घायल था और कृतज्ञता से फुग्गा की ओर देख रहा था। फुग्गा ने सहारा देकर उसे उठाया व धीरे धीरे सड़क तक ले आया। देवयोग से तत्काल एक आटो मिल गया। फकीरचंद ने अपने घर जाने की इच्छा व्यक्त की। यद्यपि फुग्गा उसे किसी डाक्टर के क्लीनिक तक पहुंचाकर उड़न छू हो जाना चाहता था। 
***
जैसे ही आटो फकीर चन्द के घर के सामने पहुंचा, फुग्गा ने सहारा देकर उसे उतारा तथा रायफल कन्धे पर टांग ली। सहारा देकर उसे घर के अन्दर ले गया। पुन्नो रानी अपने पति की हालत देख सन्न रह गई। पूछने पर फकीर चन्द ने सारी घटना कह सुनाई। जब उसने सुना कि उसके पति की सहायता उस चोर ने की है जिसे पकड़ने के लिये उसके पति उसके पीछे दौड़ रहे थे। उसे विश्वास न हो रहा था। भला एक चोर किसी पुलिस वाले की सहायता क्यों करेगा? उसने फुग्गा से पूछ ही लिया कि एक नामी चोर होते हुए भी उसने उसके पति की सहायता क्यों की?
उत्तर में फुग्गा ने मुस्कराकर कहा- “ यदि इनकी जगह कोई दूसरा होता तो मैं उसे वहीं छोडकर भाग चुका होता। भाभी जी हम जैसे बुरे लोगों के बीच आपके पति जैसे कुछ लोग ही तो हैं जिनकी वजह से दुनिया चल रही है। ऐसे व्यक्ति  को घायल अवस्था मे मैं जंगल मे मरने के लिए अकेला कैसे छोड़ देता? तुम्हारा पति अपनी सरकारी ड्यूटी करने  के लिये मेरे पीछे दौड़ रहा था। मैं चोर भले ही हूं किन्तु मानव भी तो हूं। कोई भला आदमी कष्ट में हो तो मैं कैसे उसे मरने के लिये छोड़ सकता हूं?” उसने जल्दी से बताया और तेजी से बाहर निकल गया। पुन्नो रानी गर्व से अपने पति की ओर देख रही थी जिसकी प्रसंसा अभी अभी एक चोर करके गया है। उसे आत्म ग्लानी होने लगी कि खुद उसने कभी अपने पति के अच्छे गुणों को महत्व न दिया।
जिस अच्छाई को एक चोर ने पहचान लिया था उस अच्छाई को वह अपने पति के साथ कितने वर्ष तक रहकर भी नहीं पहचान सकी। हर समय उनका अपमान ही करती रही। उसे पश्चाताप होने लगा और आंखों से आंसू बहने लगे। मन ही मन बोली-“अब ऐसा ना होगा। मेरे पूर्व जन्मों का कोई अच्छा फल रहा होगा किस कारण मुझे इतना अच्छा पति मिला। अब मैं अपने पति का सम्मान भी करूंगी और सेवा भी।‘’ वह उठी और पति के पास बैठकर उसके पैर दबाने लगी। 
इस परिवर्तन को देखकर फकीर चन्द हैरान थे। सोच रहे थे कि इस द्रष्य पर विश्वास करे या न करें।

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