virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Short Story 9164 0 Hindi :: हिंदी
गुनाह दयानंद हैरान-परेशान है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि तमाम कोशिशों के बावजूद उसे अपने काबिल बेटों के लिए बहुएं क्यों नहीं मिल रही हैं? जबकि वह तमाम जतन कर चुका है! यहां तक कि शादी डाटकाम में, मैट्रोमनीज में, अपने बेटों की शादी के लिए रजिस्टेªशन तक करवा चुका है। वह समाचारपत्रों में लगातार इश्तहार भी दिया है कि उसे दहेज का तनिक लालच नहीं है। बस उसे अदद बहुएं चाहिए। एक साड़ी में भी विदा करेंगे, तब भी शीरोधार्य होगा। वह बहुओं की शादी अपने खर्चे पर भी करने को तैयार है। वह नामी-गिरामी पंडितों को भी इस काम में लगा रखा है। रिश्तेदारों और मित्र-यारों से विवाह योग्य लड़कियां पता करने के लिए कहा है; लेकिन अफसोस, कहीं से कोई माकूल जवाब उसे नहीं मिल रहा है। यहां तक कि वह क्षेत्र, प्रांत, धर्म व जाति के बंधन को भी तोड़ने के लिए तैयार है। लेकिन, अफसोस कि कहीं-कहीं लड़की होती है एक; परंतु मुंहमांगा लालच देनेवाले होते हैं अनेक। यानी सब दूर एक अनार; सौ बीमार की-सी हालत दिखाई दे रही है। पचासों पापड़ बेलने के बाद अब उसे आभास होने लगा है कि वह इस दौड़ में पिछड़ गया है। पोता-पोती देखने की उसकी तमन्ना धूल-धूसरित होने लगी है। तभी एक दिन उसे ख्याल आया कि लड़कियों की इस कमी के लिए वह भी कम कसूरवार नहीं है। वह अपनी दो-दो बेटियों को गर्भ मे ही मौत की नींद सुला चुका है। पहले कानून इतना कड़क नहीं था; इसलिए जाने-अनजाने में उससे यह गुनाह हो गया है। इसका ख्याल आते ही तीस बरस पुरानी वह घटना उसके दिलोदिमाग में एक-एककर कौंधने लगी, जिसमें उसके द्वारा ऐसा महापाप किया गया है। ओह...वह अपना माथा पीट लिया! पछतावे की आग उसके तन-बदन को झुलसाने लगी। लेकिन, अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत! बेटियों का महत्व अब उसे समझ में आने लगा है कि बेटियों को गर्भ में ही मारेंगे, तो बहू कहां से लाएंगे? जैसी करनी, वैसी भरनी। दुनिया की यही रीत है। वह भी इसी दुनिया का वाशिंदा, जो ठहरा। --00-- अनुरोध है कि मेरे द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan पर सर्च कर पाकेट नावेल का आनंद उठाया जा सकता है।