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*प्रेरणास्पद कहानी•••✍️* 💐*सत्कर्म करें, अहंकार नहीं..*💐 #प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह#

Karan Singh 30 Mar 2023 कहानियाँ धार्मिक Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/भंडारा और तीन दोस्त/हिन्दू परम्पराएं और उनका महत्व/चौदह प्राचीन हिन्दू परम्पराएं और उनसे जुड़े लाभ/Sapno ka sodagar... Karan Singh/शादी-विवाह का महत्व/शादी-विवाह के लिए गोत्रो का महत्व/चयन का महत्व/भक्ति/धार्मिक कथा/रामायण/महाभारत/***************************************** *🌸प्रेरक कहानी🌸*#सहारा** 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह💐/सहारा/छोटी बहू/आदर्श बहु/जिम्मरदारी/*🌳🦚प्रेरक कहानी🦚🌳 *💐💐ओहदे की कीमत(दहेज में)💐💐 #प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह#/ओहदे का महत्व/दहेज प्रथा/नारी शक्ति/बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ/बेटियां/*प्रेरक कहानी* *मेहनत के फल का महत्व* 💐सपनों का सौदागर......करण सिंह💐/मेहनत के फल का महत्व/karan singh/सपनों का सौदागर/*🌳प्रेरक कहानी🦚🌳 *💐💐कलियुग-धर्म💐💐* सपनों का सौदागर.....करण सिंह/कलियुग धर्म/*प्रेरणास्पद कहानी 💐*प्रोफेसर की सीख..*💐 ✍🏻प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह/प्रोफेसर की सीख/Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/google/सनातन धर्म/*प्रेरणास्पद कहानी•••✍️* 💐*सत्कर्म करें, अहंकार नहीं..*💐 #प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह#/सत्कर्म करें, अंहकार नही/ 5493 0 Hindi :: हिंदी

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*प्रेरणास्पद कहानी•••✍️*
💐*सत्कर्म करें, अहंकार नहीं..*💐
#प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह#
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एक बार की बात है कि *श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे.* रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि *प्रभु: एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?*

*श्री कृष्ण ने कहा: अर्जुन, तुम मुझसे बिना किसी हिचक, कुछ भी पूछ सकते हो।*

तब अर्जुन ने कहा: कि *मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि* दान तो मै भी बहुत करता हूँ, *परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं?*

यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले: कि *आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।*

*श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया।*

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💐*सत्कर्म करें, अहंकार नहीं..*💐
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इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन *इन दोनों सोने की पहाड़ियों को* तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।

अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही *यह काम करने के लिए चल दिया।* उसने सभी गाँव वालों को बुलाया।

उनसे कहा कि वह लोग *पंक्ति बना लें* अब मैं आपको सोना बाटूंगा और *सोना बांटना शुरू कर दिया।*

गाँव वालों ने अर्जुन की खूब *जय जयकार करनी शुरू कर दी।* अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए। 

*लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे। उनमे अब तक अहंकार आ चुका था।* 


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गाँव के लोग वापस आ कर *दोबारा से लाईन में लगने लगे थे।* इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे। 

जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, *उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी।*

उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि *अब मुझसे यह काम और न हो सकेगा।* मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए।

*प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया।*

उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों *पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो।*

*कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये।*

उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा: *यह सोना आप लोगों का है,* जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये।

*ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए।*

यह देख कर अर्जुन ने कहा कि *ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?*

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श्री कृष्ण ने अर्जुन को शिक्षाप्रद भाव से जवाब दिया कि *तुम्हे सोने से मोह हो गया था।* तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे *कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है।* 

उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे। तुम में *दाता होने का भाव आ गया था..*

*दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया। वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए।*

वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई *उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे।* उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।

*यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है।*

इस तरह श्री कृष्ण ने *खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया,* अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था।

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*कथासार:* दान देने के बदले में *धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है।* और हम अपने नाम का शिला पट लगवाते फिरते हैं

यदि हम किसी को कुछ *दान या सहयोग करना चाहते हैं, तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए,* ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार।

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