Ranjana sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Google 69477 0 Hindi :: हिंदी
' अब छोड़ो भी यार ' ऐसे कहते हुए निगार अपने पति नरेश को मनाती है, मगर अफसोस उसका पति मानने की जगह उसके हाथ को छिटक कर आगे चला जाता।वह फिर भी अपने पति को मनाते रहती पर नरेश गुस्से से अपने काम के लिए निकल जाता।अब निगार भी दरवाजा बंद कर अंदर आकर बैठ जाती और सोचने लगती कि क्यों अब भी ऐसा है, जब तक स्त्री का मुंह बंद है तब तक वह सीधी, सरल, अच्छी और शांत स्वभाव की है घर को जोड़ने वाली है।अगर वही स्त्री अपना मुंह खोल दें तो वही स्त्री उसे विपरीत नजर आने लगते हैं ज्यादा बोलने लग गई है, सर पर चढ़ गई है वगैरह- वगैरह।स्त्री की गलती हो तो भी वह गलत, स्त्री की गलती ना हो तो भी वह गलत, हर तरफ से स्त्री ही दोषी।क्या पुरुषों का कोई दोष नहीं, उनकी कोई गलती नहीं, क्या उनके लिए कोई रोक- टोक नहीं ? तभी दरवाजे पर दस्तक होती है।स्त्री - पुरुष की परिभाषा में उलझी निगार दरवाजे खोलने के लिए आगे बढ़ती, जैसे ही दरवाजा खोलती अपने बच्चों को पाती जो स्कूल से आकर मम्मी- मम्मी की रट लगाए दरवाजे पर खड़े रहते हैं।अब निगार बच्चों में व्यस्त हो जाती उसे याद ही नहीं रहता कि कुछ वक़्त पहले उसके साथ क्या हुआ और वह क्या सोच रही थी। सच कहते हैं लोग " बच्चे मासूम और मन को मोहने वाले होते हैं उनकी प्यारी- सी मुस्कान और चटर- पटर उनकी बातें जिंदगी के परेशानियों को कम कर देते हैं ।" धन्यवाद