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उल्लू है जी!

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग satire 87099 0 Hindi :: हिंदी

व्यंग्य-कथा
						उल्लू है जी!
बचपन में उल्लू का महिमामंडन करते हुए जब गुरुजी मुझे डांटा करते थे,‘‘उल्लू कहीं का!’’ तब पहली बार एहसास हुआ था कि उल्लू कोई ऐसा प्राणी है, जो मूर्खों का पर्याय है। 
लेकिन, जब पिताजी भी यही कहकर लाड़ से छोटी-मोटी डांट लगा दिया करते थे, तब लगा करता था कि ‘उल्लू’ उपहाससूचक और स्नेहसूचक कोई ऐसा शब्द है, जो रिश्तों की मधुरता का पर्याय है।
जब होश आया, तब पता चला कि उल्लू, माता लक्ष्मी की सवारी को कहते हैं, जिसकी पूजा हम भारतीय बड़े जतन से दीपावली में धन-धान्य की प्राप्ति के लिए श्रीलक्ष्मी के साथ किया करते हैं और मां लक्ष्मी से सुख-संपदा की कामना करते रहते हैं।
वाकई जिन घरों में धन-संपदा भरी रहती है, उनके ‘थुलथुलेपन’ को देखकर आभास होता है कि वे लक्ष्मीजी को छोड़कर उल्लूजी की पूजा उसी तरह से करते होंगे, जैसे श्रीराम को पाने के लिए हनुमानजी को खुश करने की कवायद पहलेपहल की जाती है। 
ऐसे-ऐसों के डीलडौल को देखकर लगता है कि वे आंख के अंधे व गांठ के पूरे इसलिए बन गए हैं; क्योंकि उन्होंने श्रीउल्लू को श्रीलक्ष्मी से ज्यादा तवज्जो देना आरंभ कर दिया है।
बहरहाल, उल्लू की आंखें बड़ी-बड़ी और डरावनी हुआ करती है। रात के बियाबान अंधेरे में कोई उसे देख ले, तो सहसा सहम जाए। 
वह उसी तरह रात को जागता है और दिन में सोता है, जैसे ‘उल्लू के पट्ठे’ दिन में सोते हैं और रात को जागा करते हैं। 
अब, इन ‘उल्लू के पट्ठों’ को कौन समझाए कि रात को वही जागा करता है, जो उल्लू होता है। जिनके पास रात को जरूरी काम रहा करता है, वे जागते हैं, तो समझ में आता है। लेकिन, जो बेकाम के जागा करते हैं, उनके उल्लूपने पर तरस आया करता है।
यदि उल्लू नहीं बनना है, तो रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना ही चाहिए। वैसे यह आपकी मर्जी! क्योंकि कई बंदे उल्लू बने रहने में ही अपनी भलाई समझा करते हैं।
पाश्चात्य देशों में देर से सोना और देर से जागना आम है, इसलिए वहां उल्लू को समझदार व बुद्धिमान पक्षी माना जाता है। 
भारत में इसके उलट क्यों है? यह गहन शोध का विषय है। यदि भारत में ऐसा हो जाए, तो कोई ‘उल्लू कहीं का’ क्यों कहलाए?
यदि कहलाए, तो पर भी उसकी परिभाषा में आमूलचूल परिवर्तन हो जाना चाहिए। यदि जरा ‘उल्लू है जी’ कहने से किसी की समझदारी व होशियारी का बोध होने लग जाए, तो बात बन जाए।
खेद का विषय यह भी कि कई लोग उल्लू को उल्लू नहीं, अपितु लल्लू समझते हैं। तभी उसकी पूजा करने के बजाय श्रीलक्ष्मी की पूजा करते हैं। उनकी दलील है कि उल्लू, तो उल्लू है जी। उसकी पूजा क्यों की जाए?
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