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आखिरी फांसी की रात

नरेंद्र भाकुनी 30 Mar 2023 कहानियाँ देश-प्रेम देश प्रेम पंजाब दिल्ली हरियाणा भारतवर्ष विश्व अमृतसर उत्तराखंड असम मेघालय नरेंद्र मोदी अमित शाह भगवंत मान केजरीवाल 20315 0 Hindi :: हिंदी

फांसी की रात जोकि बहुत दुखदाई होती है लेकिन ऐसा वो वीर जिनको मरना मानो  सहज  लगता हो । पर फक्र है हम आजादी के लिए मर रहे हैं क्योंकि हमें तो मोहब्बत है अपने मुल्क से, अपनी मां से यही तो नुसरत ए मोहब्बत है 

भगत सिंह _ "(खुद गुनगुनाते हुए)

""नुसरत_ ए_ _मौहब्बत
सबका साथ बांटने चला हूं।
तकल्लुफ करके देखना जरा
पहरों  को आठ बांटने चला हूं।
खुशामद तो मैंने बहुत की थी चांद _सूरज की
रात को दिन और दिन को रात बांटने चला हूं।

रात का चिराग बुझ गया
तो क्या हुआ?
शमा का बरकरार बाकी है।
यह कमबख्त इश्क भी क्या चीज है
इसका ऐतबार बाकी है।
इकबाल तो मेरा तुम बनकर देख लेना
अभी तुम्हारा इंतजार बाकी है।

यूं तो चांद की नजाकत मांग ली थी हमने
उस तनाज़ की इबादत मांग ली।
थोड़ी सी सहम गए थे हम
खुदा की दुवागत मांग ली।
इस धरा को जन्नत बना दिया उस दुआ ने
हमने अपने इश्क कीइजाजत मांग  ली।

जब दो दिल्ली दरिया में मिलते हैं
जब फूल गुलशन में खिलते हैं ।
बहारों की भी क्या कशिश है?
डाली _डाली , पत्ता _ पत्ता
हवा से हिलते  हैं।""




भगत सिंह फांसी से पहले लेनिन  का जीवन परिचय पढ़ रहे थे। वहां पर अचानक जेलर आ गया उसने कहा कि तुम्हारा समय आ गया फांसी का

भगत सिंह_ ("कुछ स्वर गुनगुनाते हुवे)

आज मेरी शहादतों से
चैन मेरा उस अमन से।
खेल चुके हैं फूल सारे
पूछता हूं उस चमन से।
हम कहीं से आ रहे थे
आ रहे थे ,जा रहे थे।
पर कहीं पर सब के दिल में
क्रांतिकारी छा रहे थे।

(इसके बाद भगत सिंह ने उस किताब को ऊपर खिड़की के ऊपर फेंक दिया)

जेलर_  तुमने  ये किताब ऊपर क्यों फेंका?

भगत सिंह_  क्योंकि एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिलने जा रहा है वो भी ऊपर।

(कुछ क्षणों में भगत सिंह से मिलने सुखदेव व राजगुरु
भी मिलने आए)

सुखदेव_  " भगत भाई आज समय आ गया ऊपर जाने का क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है ।

भगत सिंह_ " हम तो वो शेर  हैं, जब जिंदा थे तब दुश्मनों को डर था और जब मर रहे तो अपनी शहादत पर दुनिया रो रही है।

राजगुरु_  हमें तो खुशी है कि हमारा एक_ एक रक्त का कतरा अपनी मातृभूमि के लिए काम आया।

भगत सिंह_ (कुछ गुनगुनाते हुए)

"हमने पूछा चंद्रमा से
हम जवां है तुम बताओ।
पर कहीं पर यह मिले हम
 हाल  सारा  ये सुनाओ।
चंद्रमा ने ये बताया_
"चांद के संग चांदनी है
राग के संग रागिनी है।
पर कहीं पर मैं जुड़ा हूं
बंदगी है, बंदगी है।"

सुखदेव_ भाई तुम्हारी कुछ पंक्तियों को मैं पूरा कर देता हूं जो इस प्रकार है_

"हम युवा थे, तुम युवा हो
बादलों ने हम को घेरा।
पर कहीं पर छट गए थे
हो गया था यह सवेरा।
महफूज हो तुम मुल्क मेरा
कट गई थी यह जवानी।
सो गए या जग गए थे
तुम सुनाओ  ये कहानी।

भगत सिंह_ वाह! वाह! वाह! मजा आ गया

राजगुरु_ भाई आप मेरी भी सुन लो कुछ पंक्तियां क्या पता आपको अच्छी लगे।

"आगाज देख लो कितना है
पानी का पनघट हम बन जाएंगे।
युवा क्रांति की ज्वाला हूं
आशिकों का जमघट हम बन जाएंगे।

भगत सिंह और सुखदेव_ वाह! वाह !वाह!

जेलर_जल्दी तैयार हो जाओ तुम्हारे फांसी का आदेश आया है कि 24 मार्च की जगह पर 23 मार्च को ही फांसी दी जाए।

भगत सिंह_"जयमाला भी हमें जल्दी मिल रही है ये तो अच्छी बात है।

तीनों मुस्कुराते हुए_

"अपने दिलों में भी
इंतकाम तोलेगा।
दिल में जो बाल है
क्रांति का लहू खौलेगा।
अगर शहादत से हम रहे ना रहे
तो मेरे देश का बच्चा_ बच्चा भी
इंकलाब बोलेगा।

सुखदेव_

"अपनी जान से भी ज्यादा
तुझे माना था हमने।
तुझे हमने अपने लहू
से सींचा था ।
तेरे लिए सदैव जान हाजिर रहेगी
क्योंकि तू हमारे दिल का बगीचा था।" 

वहां पर सारे कैरी देख रहे थे सभी में एक गुस्सा भरा था कि अचानक 24 की जगह 23 को फांसी सारे क्रांतिकारी  रो ही रहे थे और इंकलाब का नारा भी लगा रहे थे फिर भगत सिंह ने उन सब को समझाया और कहा मौत तो सबको ही आनी है क्यों ना आज ही मर जाए। 

भगत सिंह ने कुछ अपने अल्फाज में कहा_ 

""

मैं  खुले हुए का पंछी बनकर
नीलगगन में आया हूं।
उमंग नया है साहस का
मैं नये तराने लाया हूं।

लड़ते रहो, तुम झुको नहीं
चलते रहो, तुम थको नहीं।
जीवन में जाने क्या आगे?
बढ़ते रहो, तुम रुको नहीं।
"मैं" नवागत का स्वागत करने
पुष्प बिछाने आया हूं।
उमंग नया है साहस का
मैं नए तराने लाया हूं।

ये ना भूलो हार गए तुम
मंजिल कैसे मिलता है?
पर कांटो के ही राह में तो
गुलाब कहीं से खेलता है।
मैं अंबर का बादल बनकर
बरसात कराने आया हूं।
शुष्क हुई थी, धरती को मैं
मुक्त कराने आया हूं।

कहीं जीवन में अंधेरा है तो
दीपक कहीं से जलता है।
जहां प्रकृति का उपहार बांटने
सूरज रोज निकलता है।
कहीं अजातशत्रु "मैं" बनकर
यह संदेशा लाया हूं।
इसी धरा का प्रेम अलौकिक
मैं मान पढ़ाने आया हूं।

कहीं गूंज उठो तुम कोयल बनकर
मधुर मधुर से तान भरो।
अरमान बनो, गुणगान करो
कहीं सुर सरिता का आवाह्न करो।
यही सभी के दिल को जीत गए हम
ये जतलाने आया हूं।
कहीं विश्व विजय अभियान भी हो
मैं ये बतलाने आया हूं।

(फिर तीनों जाते _जाते गीत गाते चले)
मेरा रंग दे बसंती चोला, माए रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला
दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है
एक बार इस राह में मरना सौ जन्मों के समान है
देख के वीरों की क़ुरबानी अपना दिल भी बोला
मेरा रंग दे बसंती चोला …
जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे
जिसे पहन झाँसी की रानी मिट गई अपनी आन पे
आज उसी को पहन के निकला हम मस्तों का टोला
मेरा रंग दे बसंती चोला … ”

तीनों के इंकलाब के नारे से पूरा जेल गूंज उठा। उन्होंने कहा याद रखना हम फिर आएंगे अपनी मां को आजाद कराने के लिए...




जेलर ने आदेश दिया तथा तीनों पुत्र इस धरा में समाहित हो गए।

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