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आगे बढ़ना ही जिन्दगी है भाग -२

Ranjana sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ दुःखद Google 98882 0 Hindi :: हिंदी

बहुत समय बीत जाती ,दीपा अब अपने को सम्हालने ही लगती कि घर में कुछ मेहमान आते हैं और दीपा के रिश्ते के लिए उसके मां -बाप से बात करते हैं।दीपा यह सुनकर गुस्सा हो जाती है और कहती मुझे नहीं करनी शादी-वादी, मैं ऐसे ही ठीक हूं अगर आप लोग पर मैं बोझ हूं तो मैं यहां से भी चली जाती हूं,पर मैं अब शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती और अपने कमरे में चली जाती। उसके मां -बाबूजी उसे बहुत स मझाते हैं,देख बेटा अब हम बूढ़े हो गए हैं हमारा क्या है कभी भी प्राण निकल सकता है लेकिन तुम्हारे पास तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है तुम इतनी लम्बी जिंदगी अकेले नहीं काट सकती तुम्हें इसके लिए किसी ना किसी की सहारे की जरूरत है इसलिए तुम शादी कर लोगी तो हम भी निश्चिंत से अपने प्राण त्याग सकते हैं, यह सुन कर बेटी दीपा रोने लगती है और बहुत समझाने के बाद वह हां कर देती है।दीपा की शादी हो जाती वह फिर से अपने ससुराल चली जाती। वहां ससुराल में उसकी सास उसे बार -बार यही ताना देती कि अपने पहले पति को तो खा गई, अब मेरे बेटे को खाने आ गई,तब दीपा गुस्से में कहती कि मां जी आप ऐसा क्यों बोल रही हो, मैं कोई जबरदस्ती शादी करके या भागकर नहीं आई हूं । बकायदा आप लोग ही मेरी शादी अपने बेटे से कराकर लाए हैं। देखो-देखो कैसे इसका मुंह कैंची की तरह चल रही है उसकी सास कहती।दीपा अपने कमरे में चुपचाप चली जाती।जब रोहन काम करके घर लौटता तो दीपा को रोते देख उससे पूछता कि" क्या बात है दीपा तुम क्यों रो रही हो,क्या तकलीफ है तुम्हें यहां?"यह बात दीपा की सास सुन लेती और कहती उसे क्या तकलीफ है तकलीफ तो हमे हो रही है कि तेरी शादी इसी लड़की के साथ होनी थी।रोहन अपनी मां को चुप कराता है मां क्यों ऐसे शब्द बोलकर उसे चोट पहुंचाती हो आखिर तुम्हीं ने तो मेरी शादी उसके साथ कराई। हां बेटा! मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी जो मेंने ऐसी विधवा लड़की से तेरी शादी करा दी।अब यह तो रोज की कहानी हो गई थी कि दीपा के आंख से आसूं बहते ही रहते थें।रोहन को यह सब देख अच्छा नहीं लगता वह सोचते -सोचते अपने काम में जा रहा था कि अचानक एक ट्रक आकर उसे धक्का दे देता है और उसकी मौत वहीं सड़क पर हो जाती है।
                 दीपा का तो जैसे बसा -बसाया घरौंदा फिर से टूटकर जमीन पर बिखर जाती ।दीपा की सास उसे घर से धक्के देकर बाहर निकाल देती।दीपा के पास ऐसा कोई नहीं था जो उसकी मन: स्थिति को पढ़ सके , उसे सम्हाल सके।दीपा टूटकर लाचार एक आश्रम में चली जाती जहां दीपा जैसे और भी औरतें होती है।पर इस बार दीपा हिम्मत नहीं हारती वह अपने-आप को जल्द ही सम्हाल लेती और कुछ करने की सोचती ।वह वहीं के कुछ बच्चों को पढ़ाने लगती।कुछ साल पश्चात दीपा एक स्कूल की टीचर बन जाती और वहां बच्चों को पढ़ाती। उसी स्कूल का एक टीचर को दीपा से प्रेम होने लगता वह अपने प्रेम का इजहार करने जा ही रहा था कि अचानक एक बच्चा जोर से दीपा को आवाज देता -------'मां 'यह सुन उस टीचर के कदम रुक से जाते और दीपा से कहता यह बच्चा कोन है।दीपा बोलती "मेरा एकमात्र सहारा मेरा प्यारा बेटा आलोक है।"वह टीचर का तो जैसे मुंह ही बंद हो जाता।खुद को सम्हालते हुए कहता कि क्या तुम शादीशुदा हो।दीपा बोलती हां और वह अपने जिंदगी के कुछ दुख भरे पल उससे बयां करती और वह कुछ देर के लिए खो - सी जाती------
            "हर चीज पेज के पन्नों में लिखी नहीं जा सकती
             हर बात दिल की गहराई में ,राज नहीं रखी जा सकती।"
        तभी उसका बेटा उसका हाथ खींचते हुए कहता मां चलो ना हम आइसक्रीम खाने चलते हैं और वह वहां से अपने बच्चे को लेकर चली जाती।
                                                        धन्यवाद

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