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हास्य-व्यंग्य:: आंदोलनजीवी

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग Satire 33573 0 Hindi :: हिंदी

हास्य-व्यंग्य										आंदोलनजीवी
पड़ोसी ने मुझसे पूछा,‘‘भाईसाहब, अभी तक मैंने परजीवी शब्द सुन रखा था, जो दूसरे का खून चूसकर जिंदा रहता है। जैसे मच्छर, लीख, जांेक, खटमल आदि। लेकिन, अभी-अभी भारतीय राजनीति में एक नए शब्द की चर्चा खूब हो रही है, जिसको आंदोलनजीवी कहा जा रहा है। कृपया बताएं कि आंदोलनजीवी कौन लोग हैं और आंदोलनों से किसकी जीविका चला करती है?’’
मैंने कहा,‘‘वे लोग आंदोलनजीवी हैं, जिनकी राजनीतिक लुटिया डूब चुकी है। जब हारा हुआ राजनीतिज्ञ अपना खोया हुआ जनाधार पाने के लिए आंदोलन का सहारा लेता है या किसी चलायमान आंदोलन को खाद-पानी देने लगता है, तब वह आंदोलनजीवी कहलाता है, ताकि आंदोलन लंबा खींचे और जन असंतोष इस कदर फैले कि सरकार की चूलें हिलने लगे।’’
‘‘अच्छा...छा...छा।’’पड़ोसी ने लंबी आहें भरी। 
फिर मायूस होते हुए बोला, ‘‘यह तो सरासर बदमाशी है। ऐसा आंदोलन तो वही लोग कर सकते हैं, जो अपराधियों, बदमाशों, अलगाववादियों, उग्रवादियों और विध्न-संतोषियों के हाथों खेल रहे हों। क्योंकि कोई आंदोलन तब लंबा खिंचता है, जब वह स्वाभावतः असामाजिक तत्वों के हाथों में चला जाता है। जैसा कि गत गणतंत्र दिवस पर आंदोलन के नाम पर दिखा था, जिससे देश सकते में आ गया था।’’
‘‘सही समझा आपने। आंदोलनजीविता भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है।’’ मैंने कहा,
‘‘आंदोलनों से जिन लोगों की जीविका चलती है, उन्हें भी आंदोलनजीवी कहा जाता है। इससे चरमपंथियों को; दो नंबरियों और दुश्मन देशों को सरकार की आलोचना करने और लोगों को बहकाने का मौका मिलता है। विरोधी पार्टियों को सरकार को झुकाने के लिए सदन के बहिष्कार का गोल्डन चांस मिल जाया करता है।’’ मैंने थोड़ा और खुलासा किया।
‘‘इसका आशय यह हुआ कि आंदोलनजीविता से देश का भला नहीं होनेवाला है। यह तो देश को रसातल में ले जाने की सोची-समझी साजिश है।’’ पड़ोसी ऐसे उठ बैठे, जैसे उन्होंने अपनी जिज्ञासा का शमन कर लिया हो।
फिर उन्होंने चलते-चलते कहा,‘‘आंदोलन करना लोकतांत्रिक अधिकार है, जिससे किसी को कोई गुरेज नहीं है। लेकिन, अपनी जिद्द में रहकर आंदोलनजीवी बनना अराजकता को आमंत्रित करना है। ऐसा तुच्छ काम वही लोग कर सकते हैं, जिन्हें अपने देश से नहीं; अपने स्वार्थ से सरोकार है।’’
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