Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

जीवन- सच

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जीवन- सच 19894 1 5 Hindi :: हिंदी

कल का पता न पल का पता, बांधता मन-मन की।
जवानी के झाग झांवर गए, रेनी मैली भवन की।
ठान खोदता, आन अज़माता, सुध न रही कंचन तन की।
तेरा, मेरा मिट गया फेरा, लपेट-झपेट कफ़न की।
अपने पराए, सभी लिए मुंह मोड़।
बस, इसी का मरोड़।
न अता न पता सूचना, आया एक बुलावा।
कोई सोज़ से कोई मौज़ से, कोई रोया दिखावा।
सबका साथ मसान तक, रिश्ता भव भ्रम भुलावा।
न धन तेरा न मन तेरा, दुनिया एक छलावा।नीब निचोड़, किया करोड़, मर गया जोड़-जोड़।
बस, इसी का मरोड़।
कहां जन्मा, कहां निपजा, कहां लड़ाया लाड़।
इस काया का क्या भरोसा, कहां बिखर जाएं हाड़।
सब कुछ यहीं छोड़ गया, झोंकता रहा जीवन भर भाड़।
चुहिया भी नहीं निकली, जब खोदा जीवन पहाड़।
अबकी- अबकी में गया, नहीं बैठा जोड़-तोड़।
बस, इसी का मरोड़।
ढाई गज़ कपड़ा, ढाई गज़ अरथी, ढाई गज़ ज़मीन।
ढाई घंटे ‌‌‌‌‌का दाह, ढाई दिन गम़गीन।
ढाई दिन का चोचला, ज़र जोरू और ज़मीन।
ढाई क्षण में ढह गया, पांच तत्त्व का महल हसीन।
ख़ाक होने को ख़ाक छानता, कर रहा घुड़दौड़।
बस, इसी का मरोड़।
बस, इसी का मरोड़।

Comments & Reviews

Danendra
Danendra Bhut bdiya

1 year ago

LikeReply

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: