नवीनतम ग़ज़ल
बरसात।
Neha bansla
हम नमी ( भीगने) से क्या डरने लगे...
बारिश हमे डरा रही थी.......
पर वो शायद भूल गई की बारिशों से
तो अपनी पुरानी यारी थी........
पर
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सासो के किनारे।
Neha bansla
सासो के ..........
किनारे बड़े तन्हा थे.........
तू आके इन्हे छू ले बस
यही तो मेरे अरमा थे।
सारी दुनिया से मुझे क्या लेना.......
बस
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शिकायत
Neha bansla
की.............
मुद्दत_ ए _तोहिम होगी मेरे इश्क की...
जिस दिन तुझ बेवफ़ा को, याद न करू
और जब निकल जाए अपना सिक्का खोटा
तो इस खु
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दर्दे जुदाई
धर्मपाल सावनेर
ये विरह वेदना को अब कोन मिटाएगा
अब तो ये दर्द और बड़ता चला जायेगा
जीने की तमन्ना मर चुकी हो जिसकी
ऐसी जिंदगी भी जी
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