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हां मैं किन्नर हूं-तुम्हारी खुशियों में शरीफ होने आ जाता हूं

Komal Kumari 16 Sep 2023 कविताएँ समाजिक 21643 0 Hindi :: हिंदी

हां मैं एक  किन्नर हूं
तुम्हारी तरह मैं भी लिया है जन्म
मैं भी 9 महीने मां के गर्भ पर पल कर प्रसव पीड़ा के साथ जन्म ली हूं
फिर भी मेरी पहचान एक किन्नर बनी
किन्नर पहचान से थी मैं अनजान मुझे कहां पता था कि यह समाज जहां मैं जन्म ली हूं मुझे अपनाएगा नहीं
जब मैंने देखा कि मैं समाज के लोगों से अलग हूं, हुई मुझे भी दुख तकलीफ
मैंने भी बहुत रोया पर मेरी आंसुओं का कोई मोल नहीं था
छोड़ आए मुझे उनकी अपनी दुनिया में जहां सब थे मेरे जैसे
ईश्वर ने दे दी मुझे किन्नर की छाप
तालिया से होती है हमारी पहचान
ईश्वर की अभिशाप को नहीं कोसता हूं समाज के तिरस्कार को ,मुस्कुरा कर सह लेता हूं 
तुम्हारी खुशियों में शरीफ होने आ जाता हूं
हैं यह कृपा माता रानी की अभिशाप के साथ वरदान भी मिला है
 वरना यह मतलबी दुनिया अपनी खुशियों में भी शरीक ना होने देते
समाज से लड़कर मिली "Third  Gender"की पहचान हमें 
आखिर क्यों?
 तुम्हारी नजरों से गिरा हूं
यही ना कि
मैं एक किन्नर हूं।

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