मोती लाल साहु 12 May 2023 शायरी समाजिक बेसुध बहे संसार- सागर की धारा, बेसुध बह जाता वह जो संभलना पाता- सत्य की धारा माया भी बहती जाती- अमृत की धारा बिष भी बहती जाती- जो रम जाता, योग उसी का बन जाता- संसार- सागर तैर जाता, वही जन योगी कहलाता। 351 0 Hindi :: हिंदी
बेसुध बहे- संसार- सागर की धारा! बेसुध बह जाता- वह जो संभलना पाता सत्य की धारा- माया भी बहती जाती अमृत की धारा- विष भी बहती जाती जो रम जाता- योग, उसी का बन जाता- संसार सागर तैर जाता वही जन योगी कहलाता !! -मोती