नज्म
नज़्म
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मै,
तुझे जब खींचता हुँ ख़ुद से बाहर,
खिंचा आता हूँ मै भी साथ तेरे,
अजब सा जिस्म मेरा हो गया है,
है जिसमे पाँव मेरे हाथ तेरे,
ज़ुबाँ अपनी अगर खामोश कर दूँ,
तेरी बातें इशारे बोलते हैं,
जिगर, जाँ, दिल, नज़र जिस को भी देखो,
तेरा ही नाम सारे बोलते हैं,
सितमगर ज़ब्त मुझमे किस क़दर तू,
नज़र तो डाल मुझ पर बेख़बर तू,
ख्याले हिज्र से भी तो डरूँ मैं,
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मै
है मेरी रात मे अब नींद तेरी,
हम इक दूजे मे यूँ खोये हुये हैं,
हमारे ख़्वाब भी इक दूसरे के,
बदन को ओढ कर सोये हुये है,
मेरे तकिये मे तेरी खुशबुयें हैं,
मेरी चादर पे तेरी सिलवटे हैं,
तू रहती है मेरे पहलू मे हरदम,
मेरे बिस्तर पे तेरी करवटें है
हो शामें सुब्ह रातें या सहर हो
कोई भी वक़्त हो कोई पहर हो
तस्सवुर मे तेरे डूबा रहूँ मै,
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मै,
ये कहने को है मेरी दास्ताँ, पर
हर इक औराक़ मे किस्से हैं तेरे,
है नामुमकिन इन्हे गिन पाए कोई
मेरे अन्दर बहुत हिस्से हैं तेरे
थकन हूँ मै तू है आराम मेरा,
बदन हूँ मै, मेरी अंगड़ाई है तू,
बदौलत तेरी दुनिया देखता हूँ,
नज़र का नूर है बीनाई है तू,
कभी होता न इस पर रंग रोगन
मेरी सूरत तेरे जलवों से रौशन,
तेरी रौनक मे दुनिया को दिखूँ मै
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मैं
मै शायर, तू मेरी रूमानियत है,
मै फ़ुर्सत, तू मेरी मसरूफ़ियत है,
ख़बर है तू तेरा अख़बार हूँ में,
मेरे सफ़हों मे तेरी क़ैफ़ियत है,
तेरी तारीफ़ है हर बात मेरी,
मेरे हर लफ्ज़ मे तेरी सिफ़त है,
मै सामां हूँ तो तू क़ीमत है मेरी,
मै रुतबा हूँ तू मेरी हैसियत है,
सिमटती है वहाँ पर फिक्र मेरी,
जहाँ तू बोल दे ....सब ख़ैरियत है,
दुआओं मे तेरा ही नाम लूँ मै,
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मै,
तू बिजली है, मै बादल का गरजना,
अगर मै आईना, तू है संवरना,
मै जैसे दश्त मे हूँ राह सूनी,
तू उस पर इक मुसाफ़िर का गुज़रना,
मैं जैसे ताल देता साज़ कोई,
तू रक्कासा का है उस पर थिरकना,
मै इक बेनूर सी हूँ झील जैसे,
तू है इक चाँद का उस पर उतरना,
तू चेहरा खूबसूरत मै हूँ पर्दा,
मेरा मक़सद तूझे महफूज़ रखना,
तेरी ज़ीनत का पहरेदार हूँ मैं,
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मै,
रगों मे मेरी अब तेरा लहू है,
मेरी सूरत भी तुझ सी हुबहू है,
मेरे अन्दर से खुद मै हूँ गायब ,
सरापा जिस्म मे अब तू ही तू है,
मकां हू मै तू बामो दर है मेरा,
तू ख़द ओ ख़ाल है पैकर है मेरा,
ये तेरे इश्क का हर सू असर है,
जमाल ओ रंग अब बेहतर है मेरा,
वजूद अक्सर मै अपना भूलता हूँ,
भरम मे तेरे खुद को चूमता हूँ,
तेरा हर रंग अब खुद मे भरूँ मैं
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मैं,
ज़ुबाँ उर्दू मै तू मेरी नफ़ासत,
अगर मै लखनऊ तू है नज़ाकत,
रियाया हूँ मै उस सूबे का जिसमे,
कई सदियों से है तेरी हुकूमत ,
अगर मैं वक़्त हूँ तो तू घड़ी है,
मैं क़ैदी हूँ तू मेरी हथकड़ी है,
मै हूँ शमशीर मेरी धार तू है,
अगर मै सर हूँ तो दस्तार तू है,
मै हूँ रोज़ा अगर रमज़ान का तो,
मुबारक ईद का त्योहार तू है,
नज़ीरें और कितनी तेरी दूँ मैं,
तुझे कैसे अलग ख़ुद से करूँ मैं!
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
हम उनके लिए ज़िंदगानी लुटा दें
हर एक मोड़ पर हम ग़मों को सज़ा दें
चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें
अगर ख़ुद को भूले तो, कुछ भी न भूले
कि चाहत में उनकी, ख़ुदा को भुला दें
कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाए
वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें
क़यामत के दीवाने कहते हैं हमसे
चलो उनके चहरे से पर्दा हटा दें
सज़ा दें, सिला दें, बना दें, मिटा दें
मगर वो कोई फ़ैसला तो सुना दें!
जला के रख या बुझा के रख दे,
हवा में लेकिन सजा के रख दे.
मैं खैरात भी हो सकता हूँ,
अगर किसी की दुआ में रख दे.
अलमारी में क़ैद रहूंगा,
धूप अगर तू दिखा के रख दे.
तेरे आगे वक़्त भी क्या है,
तू जब चाहे नचा के रख दे.
डोर साँस की कटे न जब तक,
तू पतंग से उड़ा के रख दे.
लिख तो सही हर्फों में मुझको,
फिर चाहे तो मिटा के रख दे.
ग़ज़ल मुझे तू मान ले अपनी,
फिर चाहे गुनगुना के रख दे!