संदीप कुमार सिंह 14 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4111 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) सावन जल बरसे अभी, चमक रही है दूब। हरी चुनरिया ओढ़कर, धरती लगती खूब।। हरी चुनरिया ओढ़कर,वसुंधरा है मग्न। जो देती है अति खुशी,बहुत दिव्य है लग्न।। हरी चुनरिया ओढ़कर,धरा बनी है स्वर्ग। वन में नाचे मोर भी,मानव रचते सर्ग।। हरी चुनरिया ओढ़कर,सजे हुए हैं फूल। भीनी भीनी है खुशी,समय हुआ माकूल।। हरी चुनरिया ओढ़कर,भूमि बनी महबूब। लोगों में है अति खुशी,सावन बरसे खूब।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....