
Rambriksh, Ambedkar Nagar
I am Rambriksh from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote many poems to you
Vill BALUABAHADURPUR POST-RUKUNUDDEENPUR DISTRICT-AMBEDKARNAGAR
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घासों में बांस
जगत में किसका कितन
नव वर्ष का सवेरा
नये साल का आया पावन
काठ की नाव
काठ की नाव तू बढ़ता
जीने का सहारा हूं मैं
न महलों बीच उजाला ह
उनके प्रतीक्षा में
कविता-उनके प्रतीक्
गुलाब और कांटे
कांटों में पला बढ़
नइहर कै न्यौता
लुगाई कै खरचा, दवाई
पर्यावरण पर कविता-छुईमुई
कविता-पर्यावरण पर
चादर
कविता-चादर ठिठुती
नन्हा पौधा - बोया था मिट्टी में बीज
बोया था मिट्टी में
मन की मार
कविता-मन की मार ब
मन की चाह
मन क्यों चंचल इच्छ
जागो!अब जीवन लो तराश
शीर्षक-जागो !अब जीव
गुलाब
मैं गुलाब हूं फूलो
बेरोज़गारी के हाथ
कविता-बेरोज़गारी क
बढ़ते कदम मुसाफिर
शीर्षक- बढ़ते कदम
ख्याल
कविता-ख्याल ख्या
हार की जीत
स्वतंत्र चिड़िया ह
विश्व शांति दिवस पर कविता-तु हार मानेगा नहीं
विश्व शांति दिवस प
भारत भाग्य विधाता
भटक रही थी बूढ़ी मह
आओ मन का दीप जलाएं
बन जुगनू जगमग कर जा
कैकेई संताप
रोके रुके न नीर नयन
कविता-वाह रे!ईश्वर तेरे बंदे
कविता-वाह रे!ईश्वर
पुराने नीम की छांव में
गिल्ली डंडा बाघा ब
मुस्कान - मानव मुस्कान भरो मन में
मानव मुस्कान भरो म
व्यंग कविता-मैं बदल रहा हूं
शीर्षक- मैं बदल रहा
घासों में बांस
जगत में किसका कितन
मैं समय हूं - कल से कल तक ले आज खड़ा हूं
कल से कल तक ले आज खड
कुछ जीते कुछ हारे
हम जीत में तेरे साथ
गुरु गरिमा
आंख मूंद झांकू अन्
बेटी पर कविता-मन की मार
कविता-मन की मार ब
होली पर लिखी कविता-होली में हो लें हम एक दूसरे के
होली के रंगों में म
बंधन - छत के एक घोंसले पर
सहसा एक दिन नजर पड़
मर्यादा
नर नारी में भेद रहा
कविता-कंचनकाया
कविता-कंचनकाया सु
परछाइयां - न शौक, न श्रृंगार ,न इच्छा न चाह हो,
न शौक, न श्रृंगार ,न
थकान का पसीना
मोती सा मस्तक पर झि
होलिका दहन क्यों?
कविता-होलिका दहन क
भारत भाग्य विधाता
भटक रही थी बूढ़ी मह
दु:ख की बदली - रात भयानक थी काली
रात भयानक थी का
लज्जा
नयी नवेली खिली गुल
ये मेरा हक है
बड़े प्यार से, मां क
मन की व्यथा (माता-पिता की मन के बेदना पर लिखी कविता)
छुपाता रहूं कब तलक
किश्ती
कविता-किश्ती प्या
आम और तरबूजा
कविता-आम और तरबूजा
आइना
कविता-आइना खोजता
अजूबा ताजमहल
अचंभा क्या है? ताजम
काठ की नाव
काठ की नाव तू बढ़ता
विद्यार्थी की ब्यथा
खेल खेल में शिक्षा
मन की बात
कविता-मन की बात जह
ये मेरा हक है
बड़े प्यार से, मां क
मेरी शान तिरंगा है
शीर्षक-मेरी शान ति
जब मानव करने पर आता है
जीवन जीने का यदि हो
कलम बोध
कलम हूं कलम मैं अनो
उड़ते बादल - खींच खींच ले मन को जाते
खींच खींच ले मन को ज
संपर्क
कविता-संपर्क क्यो
दावत
मैं दावत खाने बैठ
बढ़ते कदम
शीर्षक- बढ़ते कदम
मैं प्रेम में पागल था
मैं प्रेम में पागल